Saturday, August 27, 2016

वैकुण्ठ लोक को प्रस्थान

किसी का मर जाना उतना कष्टकारी नहीं होता जितना की उस मर जाने वाले के पीछे उसी घर में छूट जाना.
जितने मूँहउतने प्रश्नउतने जबाब और उतनी मानसिक प्रताड़ना.
सुबह सुबह देखा कि बाबू जीजो हमेशा ६ बजे उठ कर टहलने निकल लेते हैआज ८ बज गये और अभी तक उठे ही नहींनौकरानी चाय बना कर उनके कमरे में देने गई तो पाया कि बाबू जी शान्त हो गये हैंइससे आप यह मत समझने लगियेगा कि पहले बड़े अशान्त थे और भयंकर हल्ला मचाया करते थेयह मात्र तुरंत मृत्यु को प्राप्त लोगों का सम्मानपूर्ण संबोधन है कि बाबू जी शांत हो गये और अधिक सम्मान करने का मन हो तो कह लिजिये कि बाबू जी ठंड़े हो गये.
बाबू जी मर गयेगुजर गयेनहीं रहेमृत्यु को प्राप्त हुयेस्वर्ग सिधार गयेवैकुण्ठ लोक को प्रस्थान कर गये आदि जरा ठहर कर और संभल जाने के बाद के संबोधन हैं.

बाबू जी शांत हो गये और अब आप बचे हैं तो आप बोलियेरिश्तेदारों को फोन कर कर केआप बताओगे तो वो प्रश्न भी करेंगेजिज्ञासु भारतीय हैं अतः सुन कर मात्र शोक प्रकट करने से तो रहे.
जैसे ही आप बताओगे वैसे ही वो पूछेंगेअरे!! कब गुजरेकैसे? अभी पिछले हफ्ते ही तो बात हुई थी... तबीयत खराब थी क्या?
तब आप खुलासा करोगे कि नहींतबीयत तो ठीक ही थीकल रात सबके साथ खाना खायाटी वी देखाहाँथोड़ा गैस की शिकायत थी इधर कुछ दिनों से तो सोने के पहले अजवाईन फांक लेते थेबस!! और आज सुबह देखा तो बस...(सुबुक सुबुक..)!!
वो पूछेंगेडॉक्टर को नहीं दिखाया था क्या?
अब आप सोचोगे कि क्या दिखाते कि गैस की समस्या हैवो भी तब जब कि एक फक्की अजवाईन खाकर इत्मिनान से बंदा सोता आ रहा है महिनों से.
आप को चुप देख वो आगे बोलेंगे कि तुम लोगों को बुजुर्गों के प्रति लापरवाही नहीं बरतना चाहियेउन्होंने कह दिया कि गैस है और तुमने मान लिया? हद है!! हार्ट अटैक के हर पेशेंट को यहीं लगता है कि गैस हैतुम से ऐसी नासमझी की उम्मीद न थीबताओ, बाबूजी असमय गुजर गये बस तुम्हारी एक लापरवाही सेखैरअभी टिकिट बुक कराते है और कल तक पहुँचेंगेइन्तजार करना.
ये लोये तो एक प्रकार से उनकी मौत की जिम्मेदारी आप पर मढ दी गई और आप सोच रहे हो कि  असमय मौतबाबू जी की९२ वर्ष की अवस्था मेंतो समय पर कब होतीआपके जाने के बाद?
अब खास रिश्तेदारों का इन्तजार अतः अंतिम संस्कार कलआज ड्राईंगरुम का सारा सामान बाहर और बीच ड्राईंगरुम में बड़े से टीन के डब्बे में बरफ के उपर लेटा सफेद चादर में लिपटा बाबू जी का पार्थिव शरीर और उनके सर के पास जलती ढेर सारी अगरबत्ती और बड़ा सा दीपक जिसके बाजू में रखी घी की शीशीजिससे समय समय पर दीपक में घी की नियमित स्पलाई ताकि वो बुझे न!! दीपक का बुझ जाना बुरा शगुन माना जाता था भले ही बाबू जी बुझ गये हों. अब और कौन सा बुरा शगुन!!
अब आप एक किनारे जमीन पर बैठने की बिना प्रेक्टिस के बैठे हुएआसन बदलते,घुटना दबातेमूँह उतारे कभी फोन पर- तो कभी आने जाने वाले मित्रोंमौहल्ला वासियों और रिश्तेदारों के प्रश्न सुनते जबाब देने में लगे रहते हैं, जैसे आप आप नहीं कोई पूछताछ काउन्टर हो!!
वे आये -बाजू में बैठे और पूछने लगे एकदम आश्चर्य सेये क्या सुन रहे हैंमैने तो अभी अभी सुना कि बाबू जी नहीं रहेविश्वास ही सा नहीं हो रहा.
आप सोच रहे हो कि इसमें सुनना या सुनाना क्यावो सामने तो लेटे हैं बरफ पर.कोई गरमी से परेशान होकर तो सफेद चादर ओढ़कर बरफ पर तो लेट नहीं गये होंगेठीक ही सुना है तुमने कि बाबू जी नहीं रहे और जहाँ तक विश्वास न होने की बात है तो हम क्या कहेंसामने ही हैंहिला डुला कर तसल्ली कर लो कि सच में गुजर गये हैं कि नहीं तो विश्वास स्वतः चला आयेगा.
दूसरे आये और लगे कि अरे!! क्या बात कर रहे हो  कल शाम को ही तो नमस्ते बंदगी हुई थी... यहीं बरामदे में बैठे थे...
अरे भईमरे तो किसी समय कल रात में हैंकल शाम को थोड़े... और मरने के पहले बरामदे में बैठना मना है क्या?
फिर अगलेभईयाकितना बड़ा संकट आन पड़ा है आप पर!! अब आप धीरज से काम लो..आप टूट जाओगे तो परिवार को कौन संभालेगाउनका कच्चा परिवार है..सब्र से काम लो भईया...हम आपके साथ हैं.
हद है..कच्चा परिवारबाबू जी काहम थोड़े न गुजर गये हैं भई..कच्चा तो अब हमारा भी न कहलायेगा..फिर बाबू जी का परिवार कच्चा???..अरेपक कर पिलपिला सा हो गया है महाराज और तुमको अभी कच्चा ही नजर आ रहा है.
यूँ ही जुमलों का सिलसिला चलता जाता है समाज में.
कल अंतिम संस्कार में भी वैसा ही कुछ भाषणों में होगा कि बाबू जी बरगद का साया थेबाबू जी के जाने से एक युग की समाप्ति हुईबाबू जी का जाना हमारे समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है आदि आदि.
और फिर परसों से वही ढर्रा जिन्दगी का......एक नये बू जी होंगे जो गुजेंगे..बातें और जुमले ये ही..
यह सब सामाजिक वार्तालाप है और हम सब आदी हैं इसके.
इस देश के पालनहार भी हमारी आदतों से वाकिफ हैं. वो भी जानते हैं कि काम आते हैं वही जुमलेवही वादे और फिर उन्हीं वादों से मुकर जानाकिसी को कोई अन्तर नहीं पड़ता. हर बार बदलते हैं बस गुजरे हुए बाबू जी!!
बाकी सब वैसा का वैसा...एक नये बाबू जी के गुजर जाने के इन्तजार में..
जिन्दगी जिस ढर्रे पर चलती थीवैसे ही चल रही है और आगे भी चलती रहेगी.
बाकी तो जब तक ये समाज है तब तक यह सब चलता रहेगा...हम तो सिर्फ बता रहे थे...

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