Saturday, August 27, 2016

दुआ, प्रार्थना, शुभकामना, मंगलकामना, बेस्ट विशेस

दुआ, प्रार्थना, शुभकामना, मंगलकामना, बेस्ट विशेस आदि सब एक ही चीज के अलग अलग नाम हैं और हमारे देश में हर बंदे के पास बहुतायत में उपलब्ध. फिर चाहे आप स्कूल में प्रवेश लेने जा रहे हों, परीक्षा देने जा रहे हों, परीक्षा का परिणाम देखने जा रहे हों, बीमार हों, खुश हों, इंटरव्यू के लिए जा रहे हों, शादी के लिए जीवन साथी की तलाश हो, शादी हो रही हो, बच्चा होने वाला हो, पुलिस पकड़ के ले जाये, मुकदमा चल रहा हो, या जो कुछ भी आप सोच सकें कि आप के साथ अच्छा या बुरा घट सकता है, आपके जानने वालों की दुआयें, उनकी प्रार्थना, उनकी शुभकामनायें आपके मांगे या बिन मांगे सदैव आपके लिए आतुर रहती हैं और मौका लगते ही तत्परता से आपकी तरफ उछाल दी जाती है.
भाई जी, हमारी दुआयें आपके साथ हैं. सब अच्छा होगा या हम आपके लिए प्रार्थना करेंगे या आपकी खुशी यूँ ही सतत बनी रहे, हमारी मंगलकामनायें. आप अपने दुख में और अपनी खुशी में मित्रों और परिचितों की दुआयें और शुभकामनायें ले लेकर थक जाओगे मगर देने वाले कभी नहीं थकते.
उनके पास और कुछ हो न हो, दुआओं और प्रार्थनाओं का तो मानो कारु का खजाना होता है- बस लुटाते चलो मगर खजाना है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा.
dua
अक्सर दुआ प्राप्त करने वाला लोगों और परिचितों की आत्मियता देखकर भावुक भी हो उठता है. अति परेशानी या ढेर सारी खुशी के पल में एक समानता तो होती है कि दोनों ही आपके सामान्य सोचने समझने की शक्ति पर परदा डाल देते हैं और ऐसे में इस तरह से परिचितों की दुआओं से आत्मियता की गलतफहमी हो भावुक हो जाना स्वभाविक भी है.
असल में सामान्य मानसिक अवस्था में यदि इन दुआओं का आप सही सही आंकलन करें तब इसके निहितार्थ को आप समझ पायेंगे मगर इतना समय भला किसके पास है कि आंकलन करे. जैसे ही कोई स्वयं सामान्य मानसिक अवस्था को प्राप्त करता है तो वो खुद इसी खजाने को लुटाने में लग लेता है. मानों की जैसे कर्जा चुका रहा हो. भाई साहब, आप मेरी मुसीबत के समय कितनी दुआयें कर रहे थे, मैं आज भी भूला नहीं हूँ. आज आप पर मुसीबत आई है, तो मैं तहे दिल दुआ करता हूँ कि आप की मुसीबत भी जल्द टले. उसे उसकी दुआ में तहे दिल का सूद जोड़कर वापस करके वैसी ही कुछ तसल्ली मिलती है जैसे किसी कब्ज से परेशान मरीज को पेट साफ हो जाने पर. एक जन्नती अहसास!!
जब आपके उपर सबसे बड़ी मुसीबत टपकती है जैसे कि परिवार में किसी अपने की मृत्यु, तब इस दुआ में ईश्वर से आपको एवं आपके परिवार को इस गहन दुख को सहने की शक्ति देने की बोनस प्रार्थना भी चिपका दी जाती है मगर स्वरुप वही दुआ वाला होता है याने कि इससे आगे और किसी सहारे की उम्मीद न करने का लाल लाल सिगनल.
दुआओं का मार्केट शायद इसी लिए हर वक्त सजा बजा रहता है क्यूँकि इसमें जेब से तो कुछ लगना जाना है नहीं और अहसान लदान मन भर का. शायद इसी दुआ के मार्केट सा सार समझाने पुरनिया ज्ञानी ये हिन्दी का मुहावरा छाप गये होंगे:
’हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आये’
दरअसल अगर गहराई से देखा जाये तो जैसे ही आप सामने वाले को दुआओं की पुड़िया पकड़ाते हो, वैसे ही आप उसके मन में आने वाले या आ सकने वाले ऐसे किसी भी अन्य मदद के विचार को, जिसकी वो आपसे आशा कर सकता था, खुले आम भ्रूण हत्या कर देते हो और वो भी इस तरह से कि हत्या की जगह मिस कैरेज कहलाये.
जब कोई आपकी परेशानी सुन कर या जान कर यह कहे कि आप चिन्ता मत करिये मैं आपके लिए दुआ करुँगा और मेरॊ शुभकामनाएँ आपके साथ है तो उसका का सीधा सीधा अर्थ यह जान लिजिये कि वो कह रहा है कि यार, आप अपनी परेशानी से खुद निपटो, हम कोई मदद नहीं कर पायेंगे और न ही हमारे पास इतना समय और अपके लिए इतने संसाधन है कि हम आपके साथ आयें और समय खराब करें. आप कृपया निकल लो और जब सब ठीक ठाक हो जाये और उस खुशी में मिठाई बाँटों तो हमें दर किनार न कर दो इसलिए ये दुआओं की पुड़िया साथ लेते जाओ.
हाल ही में जब हमारे प्रधान मंत्री जी जन सुरक्षा की तीन तीन योजनाओं की घोषणा करने लगे, जैसे कि दुर्घटना बीमा, पेंशन एवं जीवन बीमा के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना एवं प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना- जिसमें पैसे आपके ही लगने है और उसी के आधार पर आगे आपको लाभ प्राप्त करना है, तब उनका ओजपूर्ण अंदाज भी कुछ ऐसा ही दुआओं और प्रार्थना वाला नजर आया. इसका सार उन्होंने अपने भाषण के शुरुआती ब्रह्म वाक्य में ही दे दिया जब उन्होंने कहा कि गरीब को सहारा नहीं, शक्ति चाहिये.
और बस मैं सोचने को मजबूर हुआ कि चलो, अब सरकार भी हम आम जनों जैसे ही दुआ करने में लग गई है और अधिक जरुरत पड़ने पर आपको और आपके परिवार को शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना में.
याने कि अब आप अपने हाल से खुद निपटिये और सरकार आपकी मुसीबतों से निपटने के लिए दुआ और उस हेतु आपको शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना करेगी.
मौके का इन्तजार करो कि जब ये ही लोग पाँच साल बाद आपके पास अपनी चुनाव जीतने की मुसीबत को लेकर आयें तो आप सूद समेत तहे दिल से दुआ देना, बस!!
वोट किसे दोगे ये क्यूँ बतायें! ये तो गुप्त मतदान के परिणाम बतायेंगे.

विकास की संभावना

पापा, ये अंकल तो देश का विकास करने वाले थे फिर बार बार विदेश क्यूँ चले जाते हैं?
बेटा, वो क्या है न, कहते हैं विदेश में संभावना बसती है, उसी को तलाशने जाते हैं.
अरे, संभावना तो फ्रेन्डस कॉलोनी में रहती है. मेरे साथ पढ़ती है मेरे स्कूल में. वो तो कभी विदेश गई भी नहीं तो फिर उसे तलाशने विदेश क्यूँ जाते हैं बार बार. मेरे स्कूल में ही आकर मिल लें.
बेटा, समझने की कोशिश करो. ये वो वाली संभावना नहीं है जो तुम समझ रहे हो. ये वो वाली संभावना है जिसे सिर्फ वो समझ रहे हैं और जिसके मिल जाने पर उनके हिसाब से इस देश का विकास होगा.
याने पापा, देश के विकास के लिए, देश में बसी संभावना जिसका पता मुझे तक मालूम है वो किसी काम की नहीं और उसकी दो कौड़ी की औकात नहीं और विदेश में बसी संभावना, जिसकी तलाश में नित प्रति माह विदेश विदेश भटक रहे हैं वो विकास की लहर ला देगी.. याने जैसे हमारा योग कसरत और चाईना का योग – योगा ताई ची..सेल्फी तो बनती है ताई ची के नाम...मगर ये बात कुछ समझ नहीं आई. पापा ठीक से समझाओ न!! प्लीज!
अच्छा इसे ऐसे समझो कि अगर जिस संभावना की तलाश विदेशी धरती पर करने नित यात्रायें की जा रही हैं. नये मित्र बनाये जा रहे हैं ..ओबामा ..बराक हो जा रहे हैं और जिन्पिंग ..झाई..इन लन्गोटिया मित्रों के गप्प सटाके के दौर में...अगर उस संभावना की एक झलक भी मिल गई तो बस हर तरफ देश में विकास ही विकास नजर आयेगा और तब ये और जोर शोर से नई नई संभावनायें तलाशते और ज्यादा विदेशों में नजर आयेंगे.
मगर पापा, पता कैसे चलेगा कि विकास आ गया?
बेटा, कुछ विकास तो तुम अपने मानसिक स्तर पर देख ही रहे हो..जिन देशों के नाम तुमने सुने भी न थे..इस अंकल की यात्राओं ने और टीवी वालों की मेहरबानी ने तुमको कंठस्थ करा दिये हैं..जैसे शैशल्स, मंगोलिया आदि आदि..अभी और बहुत सारे सीखोगे हर हफ्ते एक नये देश का नाम...
बाकी सही मायने में विकास को समझने के लिए..ऐसे समझो कि जब एक सुबह तुम जागो और सुनो कि तुम्हारा शहर अब तुम्हारा वाला शहर न होकर स्मार्ट शहर हो गया है याने कि इत्ता स्मार्ट कि आत्म हत्या करने के लिए अब न तो तुम्हें खेतिहर होने की जरुरत महसूस हो, न खेत की और न खराब मौसम का इन्तजार करना पड़े और हर जगह ये कर जाने के कारण स्मार्टली खड़े नजर आयें..तो समझ लेना कि विकास ने दस्तक दे दी है....
याने जब तुम्हारी ट्रेन एक्सप्रेस, पैसेंन्जर, सुपर फास्ट से स्मार्ट होकर बुलेट हो जाये मतलब कि वो ३०० किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ तो सकती हैं मगर उसके दौड़ने के लिए जरुरी ट्रेक अभी स्मार्ट होने के इन्तजार में हैं और उसे स्मार्ट बनाने वाली संभावना अभी तलाशी जाना बाकी है... जब बड़ी बड़ी विदेशी संभावनाओं की उत्साहित संताने मेक इन इंडिया का नारा लगाते लगाते आधारभूत जरुरतों जैसे बिजली, पानी, सड़क आदि के स्मार्ट होने के इन्तजार में ब्यूरोक्रेसी से लड़ते हुए एक किसान की तरह अच्छे दिनों के इन्तजार में किसी पेड़ से लटक कर अपनी हर योजनाओं का गला घोंट स्मार्टली वापस लौट जायें - उन्हीं संभावनाओं के पास, जहाँ से वो आई थीं- खुद को संभावनाओं के साथ पुनः तलाशे जाने के लिए. तो समझ जाना विकास आ गया है.
जब आत्म हत्या और हत्या समकक्ष हो जाये और पोस्टमार्टम का इन्तजार न करे और स्मार्ट सिस्टम पहले से उनके हो सकने का कारण बता सके...और कारण भी ऐसा जिसकी वजह से केस में आगे किसी इन्वेस्टीगेशन की जरुरत को नकारा जा सके ...तब समझ लेना विकास आ गया.
जब गांव इतने स्मार्ट विलेज और ग्रमीण इतने स्मार्ट विलेजर हो जाये कि वो इस बात को समझने लगे कि लैण्ड का स्मार्ट इस्तेमाल एग्रीकल्चर के लिए उपलब्ध कराना न होकर एक्विजिशन के लिए उपलब्ध कराना होता है...तब समझ लेना कि संभावना की तलाश का बीज विकास का फल बन कर बाजार में बिकने को तैयार है.
search_global
पापा, मुझे तो अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा..भला विदेश में संभावना तलाशने से देश में किसी का विकास कैसे हो सकता है. कोई उदाहरण देकर समझाईये न!!
ओके, चलो इसे ऐसे देखो- तुम्हारे चाचा संभावनाओं की तलाश में कुछ बरस पहले सपरिवार विदेश में जा बसे थे- है न!!
और मैं देश में नौकरी करता रहा. तुम्हारे दादा जी धीरे धीरे अशक्त और बुढ़े हो गये...और तुम्हारे चाचा विदेश में संभावनाओं की तलाश के साथ व्यस्त...
बस!! मौका देखकर और तुम्हारे दादा के अशक्तता का फायदा उठाते हुये, तुम्हारे दादा की जिस जायदाद का आधा हिस्सा मुझे मिलना था वो पूरा मैने अपने नाम करा और बेच बाच कर सब अपना कर लिया...स्मार्टली! ये कहलाता है स्मार्ट विकास!!
देखा न कैसे तुम्हारे चाचा की विदेश में संभावनाओं की तलाश ने मुझे देश में ही रहते हुए दुगना विकास करा दिया..अब आया समझ में तुमको?
जी पापा, अब बिल्कुल समझ में आ गया....भईया भी कह रहा था कि बड़ा होकर वो कम्प्यूटर इंजीनियर बनेगा और विदेश जायेगा... तब तक तो आप भी बुढ़े हो जाओगे और मै भी भईया के विदेश में संभावना तलाशने की वजह से, आपके बुढ़ापे का फायदा उठाकर, आपकी जायदाद का मालिक बन कर दुगना विकसित हो जाऊँगा...
इतना ज्यादा विकसित और स्मार्ट कि आपको बिल्कुल तकलीफ न हो इसलिए नर्सिंग वाली सुविधायुक्त रिटायरमेन्ट होम में आपको स्पेशल कमरा दिलवाऊँगा ...क्यूँकि आप मेरे स्वीट और स्मार्ट पापा हो!!
लव यू पापा!!
यूँ आर माई रोल मॉडल पापा!!

वैकुण्ठ लोक को प्रस्थान

किसी का मर जाना उतना कष्टकारी नहीं होता जितना की उस मर जाने वाले के पीछे उसी घर में छूट जाना.
जितने मूँहउतने प्रश्नउतने जबाब और उतनी मानसिक प्रताड़ना.
सुबह सुबह देखा कि बाबू जीजो हमेशा ६ बजे उठ कर टहलने निकल लेते हैआज ८ बज गये और अभी तक उठे ही नहींनौकरानी चाय बना कर उनके कमरे में देने गई तो पाया कि बाबू जी शान्त हो गये हैंइससे आप यह मत समझने लगियेगा कि पहले बड़े अशान्त थे और भयंकर हल्ला मचाया करते थेयह मात्र तुरंत मृत्यु को प्राप्त लोगों का सम्मानपूर्ण संबोधन है कि बाबू जी शांत हो गये और अधिक सम्मान करने का मन हो तो कह लिजिये कि बाबू जी ठंड़े हो गये.
बाबू जी मर गयेगुजर गयेनहीं रहेमृत्यु को प्राप्त हुयेस्वर्ग सिधार गयेवैकुण्ठ लोक को प्रस्थान कर गये आदि जरा ठहर कर और संभल जाने के बाद के संबोधन हैं.

बाबू जी शांत हो गये और अब आप बचे हैं तो आप बोलियेरिश्तेदारों को फोन कर कर केआप बताओगे तो वो प्रश्न भी करेंगेजिज्ञासु भारतीय हैं अतः सुन कर मात्र शोक प्रकट करने से तो रहे.
जैसे ही आप बताओगे वैसे ही वो पूछेंगेअरे!! कब गुजरेकैसे? अभी पिछले हफ्ते ही तो बात हुई थी... तबीयत खराब थी क्या?
तब आप खुलासा करोगे कि नहींतबीयत तो ठीक ही थीकल रात सबके साथ खाना खायाटी वी देखाहाँथोड़ा गैस की शिकायत थी इधर कुछ दिनों से तो सोने के पहले अजवाईन फांक लेते थेबस!! और आज सुबह देखा तो बस...(सुबुक सुबुक..)!!
वो पूछेंगेडॉक्टर को नहीं दिखाया था क्या?
अब आप सोचोगे कि क्या दिखाते कि गैस की समस्या हैवो भी तब जब कि एक फक्की अजवाईन खाकर इत्मिनान से बंदा सोता आ रहा है महिनों से.
आप को चुप देख वो आगे बोलेंगे कि तुम लोगों को बुजुर्गों के प्रति लापरवाही नहीं बरतना चाहियेउन्होंने कह दिया कि गैस है और तुमने मान लिया? हद है!! हार्ट अटैक के हर पेशेंट को यहीं लगता है कि गैस हैतुम से ऐसी नासमझी की उम्मीद न थीबताओ, बाबूजी असमय गुजर गये बस तुम्हारी एक लापरवाही सेखैरअभी टिकिट बुक कराते है और कल तक पहुँचेंगेइन्तजार करना.
ये लोये तो एक प्रकार से उनकी मौत की जिम्मेदारी आप पर मढ दी गई और आप सोच रहे हो कि  असमय मौतबाबू जी की९२ वर्ष की अवस्था मेंतो समय पर कब होतीआपके जाने के बाद?
अब खास रिश्तेदारों का इन्तजार अतः अंतिम संस्कार कलआज ड्राईंगरुम का सारा सामान बाहर और बीच ड्राईंगरुम में बड़े से टीन के डब्बे में बरफ के उपर लेटा सफेद चादर में लिपटा बाबू जी का पार्थिव शरीर और उनके सर के पास जलती ढेर सारी अगरबत्ती और बड़ा सा दीपक जिसके बाजू में रखी घी की शीशीजिससे समय समय पर दीपक में घी की नियमित स्पलाई ताकि वो बुझे न!! दीपक का बुझ जाना बुरा शगुन माना जाता था भले ही बाबू जी बुझ गये हों. अब और कौन सा बुरा शगुन!!
अब आप एक किनारे जमीन पर बैठने की बिना प्रेक्टिस के बैठे हुएआसन बदलते,घुटना दबातेमूँह उतारे कभी फोन पर- तो कभी आने जाने वाले मित्रोंमौहल्ला वासियों और रिश्तेदारों के प्रश्न सुनते जबाब देने में लगे रहते हैं, जैसे आप आप नहीं कोई पूछताछ काउन्टर हो!!
वे आये -बाजू में बैठे और पूछने लगे एकदम आश्चर्य सेये क्या सुन रहे हैंमैने तो अभी अभी सुना कि बाबू जी नहीं रहेविश्वास ही सा नहीं हो रहा.
आप सोच रहे हो कि इसमें सुनना या सुनाना क्यावो सामने तो लेटे हैं बरफ पर.कोई गरमी से परेशान होकर तो सफेद चादर ओढ़कर बरफ पर तो लेट नहीं गये होंगेठीक ही सुना है तुमने कि बाबू जी नहीं रहे और जहाँ तक विश्वास न होने की बात है तो हम क्या कहेंसामने ही हैंहिला डुला कर तसल्ली कर लो कि सच में गुजर गये हैं कि नहीं तो विश्वास स्वतः चला आयेगा.
दूसरे आये और लगे कि अरे!! क्या बात कर रहे हो  कल शाम को ही तो नमस्ते बंदगी हुई थी... यहीं बरामदे में बैठे थे...
अरे भईमरे तो किसी समय कल रात में हैंकल शाम को थोड़े... और मरने के पहले बरामदे में बैठना मना है क्या?
फिर अगलेभईयाकितना बड़ा संकट आन पड़ा है आप पर!! अब आप धीरज से काम लो..आप टूट जाओगे तो परिवार को कौन संभालेगाउनका कच्चा परिवार है..सब्र से काम लो भईया...हम आपके साथ हैं.
हद है..कच्चा परिवारबाबू जी काहम थोड़े न गुजर गये हैं भई..कच्चा तो अब हमारा भी न कहलायेगा..फिर बाबू जी का परिवार कच्चा???..अरेपक कर पिलपिला सा हो गया है महाराज और तुमको अभी कच्चा ही नजर आ रहा है.
यूँ ही जुमलों का सिलसिला चलता जाता है समाज में.
कल अंतिम संस्कार में भी वैसा ही कुछ भाषणों में होगा कि बाबू जी बरगद का साया थेबाबू जी के जाने से एक युग की समाप्ति हुईबाबू जी का जाना हमारे समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है आदि आदि.
और फिर परसों से वही ढर्रा जिन्दगी का......एक नये बू जी होंगे जो गुजेंगे..बातें और जुमले ये ही..
यह सब सामाजिक वार्तालाप है और हम सब आदी हैं इसके.
इस देश के पालनहार भी हमारी आदतों से वाकिफ हैं. वो भी जानते हैं कि काम आते हैं वही जुमलेवही वादे और फिर उन्हीं वादों से मुकर जानाकिसी को कोई अन्तर नहीं पड़ता. हर बार बदलते हैं बस गुजरे हुए बाबू जी!!
बाकी सब वैसा का वैसा...एक नये बाबू जी के गुजर जाने के इन्तजार में..
जिन्दगी जिस ढर्रे पर चलती थीवैसे ही चल रही है और आगे भी चलती रहेगी.
बाकी तो जब तक ये समाज है तब तक यह सब चलता रहेगा...हम तो सिर्फ बता रहे थे...

कुशल वक्ता के 5 गुण

बहुत लोगों के लिए भाषण देना एक बहुत मुश्किल काम है, स्टेज पर खड़े होते ही पसीना छूट जाता है। हालांकि ये भी सच है कि तीन-चार बार स्टेज से बोलने के बाद आपका ये डर खत्म हो जाता है या कम हो जाता है। वक्ता तो आप बन जाते हैं, लेकिन कुशल वक्ता होना आसान नहीं। कॉरपोरेट हो, पॉलिटिक्स हो, कॉलेज हो, सोसायटी हो या फिर और कोई भी फील्ड, कुशल वक्ताओं की पूछ हर जगह होती है। ऐसा होना मुश्किल जरूर हो लेकिन नामुमकिन नहीं, ड्राइविंग और स्विमिंग की तरह थोड़ी सी प्रेक्टिस और कुछ नियमों को लगातार फॉलो करने से आप अच्छे वक्ता बन सकते हैं, हां पर बिना क्रिएटिव माइंड के राह आसान नहीं। कुछ खास बातों का ध्यान एक अच्छा वक्ता हमेशा रखता है, लेकिन कैसे अपने आप में कुछ सुधार करके यह हासिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
आपने मोदी जैसे किसी नेता या अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को मंच पर आते वक्त देखा होगा कि कैसे वो मंच पर आते ही उत्साह और जोश से भर जाते हैं, उनका ये उत्साह खोखला नहीं होता, उनका ज्ञान और विषय पर पकड़ उनकी आंखों में चमक की असली वजह होती है। तो जाहिर है आपको जिस विषय पर बोलना है, उसकी पहले से तैयारी बहुत जरूरी है। घबराहट एक ऐसी चीज है जो सबको होती है चाहे वो कुशल खिलाड़ी हो या नौसिखिया, सो उसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उतना ही ठीक है। इससे बचने का एक ही तरीका है अभ्यास, क्योंकि तैराकी अगर सीखनी है तो पानी में उतरना ही होगा, किनारे पर बैठकर तैराकी के नुस्खे सीखने से कुछ नहीं होगा।
विषय का ज्ञान और उस पर पकड़ दो अलग-अलग बातें हैं, विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आपकी उस पर पकड़ भी होनी चाहिए। जितना आप उसे समझेंगे, उतना ही आत्मविश्वास से आप समझा पाएंगे, बोल पाएंगे। सबसे पहले श्रोताओं से कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, उसके लिए प्रभावी वाक्यों, शब्दों का चयन जरूरी है, उसके लिए अच्छे से तैयारी करें, शुरूआत में ही श्रोताओं से अगर आप कनेक्ट हो जाते हैं, तो वो आपकी हर बात को सीरियसली लेते हैं। कभी-कभी आपको मौके पर ही श्रोताओं से कनेक्ट करने की कई बातें मिल जाती हैं, जैसे मोदी की एक हालिया रैली में हुआ, बल्लियों पर चढ़े युवकों को देखते ही मोदी ने कहा, पहले आप उतरिए तब मैं बोलना शुरू करूंगा। सारी जनता को लगा कि मोदी ये क्या कह रहे हैं, क्या कर रहे हैं और वो जुड़ गए। उनसे कनेक्ट करने के लिए कभी-कभी वो उनसे पर्सनल सवाल भी करते हैं कि क्या आपने ऐसा कभी किया है?  या फिर आपमें से कितने लोग हैं जिनके घर में कोई सरकारी कर्मचारी है? हाथ उठाइए। इन सब बातों से जहां वक्ता का आत्मविश्वास देखने को मिलता है, वहीं कभी-कभी वो आते ही बताना शुरू कर देते हैं कि जब मैं यहां आ रहा था तो किसी ने मुझसे इस ईवेंट के बारे में ऐसा कहा।
वक्ताओं के लिए स्पीकिंग की ए,बी, सी, डी, ई जरूर याद रखनी चाहिए। ए फॉर एक्शन और एरिया यानी आप जिस सब्जेक्ट एरिया के बारे में आप बोलने आए हैं, आपके पास एक्शन प्लान है कि नहीं, जानकारी है कि नहीं, उस एरिया की समस्या और उसका समाधान है कि नहीं। दूसरा बी यानी बोल्डनेस, ये आपके कॉन्फीडेंस का पैमाना है, मंच पर बोलते वक्त आत्मविश्वास से लबालब होने चाहिए। तीसरा सी यानी क्रिएटिव, क्रिएटिवटी बहुत जरूरी है, कुछ जुमले, कुछ शेर, कुछ कविताएं, कुछ जोक, कुछ प्रेरणा देने वाले वाकए आपके दिमाग की मेमोरी में हमेशा होने चाहिए, और आपकी क्रिएटिवटी इसमें है कि आप मौके की नजाकत को देख कर फौरन मौके पर चौका मार सकें।
चौथा है डी यानी डाटा, आपको अपने विषय के कुछ इंटरेस्टिंग डाटा जरूर तैयार करके बोलने जाना चाहिए, डाटा या आंकड़े देने से आपकी बातों में वजन आता है, जब मोदी बिहार जाते हैं तो बिहार सरकार के क्राइम का वही आंकड़ा लेकर जाते हैं, जो नीतीश सरकार को डाउन कर सके। वहीं नीतीश आते हैं तो एक दूसरे आंकड़े के साथ जो मोदी की बात को हलकी कर सके, जाहिर है डाटा अहम रोल प्ले करता है और ये हर फील्ड में करता है, टीवी के एंकर से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों में होने वाली मीटिंग तक में। पांचवां शब्द है ई, यानी एनर्जी, जब आप बोल रहे हों तो आपके आसपास मंच पर, श्रोताओं के बीच, आयोजकों के बीच एनर्जी लेवल हाई होना चाहिए। अच्छे वक्ता वो होते हैं जो मंच पर आते ही सबसे पहले पूरे ईवेंट की एनर्जी बढ़ा देते हैं, स्लोगंस, गीत या चुटीले वाक्यों से ऐसा किया जा सकता है। हर फील्ड के अच्छे वक्ताओं के वीडियोज यूट्यूब में देखकर आसानी से इसे किया जा सकता है।
जब आप मंच पर हों तो यह विश्वास होना जरूरी है कि ये आपका मंच है, आपकी सत्ता है और इस पर आपकी पूरी पकड़ जरूरी है क्योंकि आप अपने अंदर यह महसूस नहीं करेंगे तो आपकी अपनी बात पर भी पकड़ नहीं रहेगी। नम्र रहिए लेकिन दब्बू नहीं। आंकड़ों और बातों में सच्चाई होनी चाहिए, और विचारों को पूरी मजबूती से रखिए।
एक और बड़ी बात है लय और शैली। वक्ता यदि अपने ज्ञान का प्रदर्शन एक सुर में करता रहे तो शायद आधे से ज्यादा श्रोता सो जाएंगे। इसलिए माहौल बोरिंग ना हो, इसलिए इससे बचना जरूरी है। अपनी बातों में लय, रस और एक दिलचस्प शैली डेवलप करना बहुत जरूरी है। बस अपनी बात को फील करिए, और उसी भावनात्मक अंदाज में पब्लिक के सामने रख दीजिए, देखिएगा श्रोता कैसे बहे चलेगा आपके साथ।
बोलने से पहले ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सुनने वाले कौन हैं, मेजोरिटी किसकी है। जाहिए है बच्चे सामने बैठे हैं, तो आपको उनके मूड को ध्यान में रखना होगा, महिलाएं हैं तो उनसे जुड़ी बातों को अपने शब्दों में पिरोना होगा। कॉरपोरेट्स हैं तो उनकी डेली लाइफ से जुड़ी बातों, किस्सों को लेना होगा, युवा किसी और तरह के मूड में रहता है और गांव देहात के लोग अलग तरह की बातें सुनना चाहते हैं।
और सबसे बड़ी बात है प्रैक्टिस, जब मौका मिले, जहां मौका मिले, स्कूल की स्टेज पर, मोहल्ले की मीटिंग में, घर के फंक्शन में जिस मुद्दे पर मौका मिले, कुछ ना कुछ जरूर बोलिए। धीरे-धीरे आपकी झिझक और डर मिटने लगेगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आप जिससे सबसे ज्यादा डरते हैं, उसी पर सबसे पहले अटैक करिए, यानी बोलना शुरू करिए। वैसे आजकल तो शुरुआत मोबाइल कैमरे के साथ भी की जा सकती है, तैयारी करिए, अपना मोबाइल ठीक ऊंचाई पर सेट करिए, वीडियो कैमरा ऑन कर दीजिए और कर दीजिए शुरुआत अच्छा वक्ता बनने की। फिर तैयारी करिए, फिर बोलिए, फिर खुद तुलना करिए या खास दोस्त से करवाइए कि पहले से बेहतर हुआ कि नहीं। खुद से ही कम्पटीशन करिए, सच मानिए धीरे-धीरे आप जानेंगे कि अरे, ये तो बहुत ही आसान था।

भाषण व्यक्ति के भीतर छिपी एक ऐसी कला है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान पाता। जबकि आज देश में अनेक ऐसे भी बंदर हैं, जो स्वयं को कुशल वक्ता ही नहीं बल्कि भाषण की मिट्टी पलीद कर यह समझते हैं कि आसमान से तारे तोड़ लाए हों। हां! यह हकीकत है कि भाषण वही प्रभावशाली होता है जिसकी कम से कम एक बात को श्रोता कुछ दिन या ज्यादा दिनों तक गुनगुनाएं। एक अच्छे गीत की तरह। लेकिन बात अच्छी हो कोई घास-कूड़ा नहीं क्योंकि घास-कूड़े वाली बातें करने से आपकी ही छवि खराब होगी।
एक अच्छा वक्ता सदैव भाषण करने से पूर्व उसकी पूरी तैयारी करता है। एक-एक शब्द चुन-चुनकर बोलता है। शब्दों के महत्व को समझते हुए अपने विचार श्रोताओं के सम्मुख रखता है। आइए जानते हैं भाषण करने से पूर्व क्या तैयारियां हमें करनी चाहिए।

विचार संग्रह

जिस विषय पर हम भाषण करने वाले हैं उस संदर्भ में विचार संग्रह करना मूलभूत आवश्यकता है। विचार संग्रहित करने के लिए उस विषय पर पुस्तक, लेख और नवीनतम आंकड़े सभी इकठ्ठे करके उनका अध्ययन करना अति आवश्यक है।

लिखें कागज पर भाषण

भाषण की विचार व्यवस्था करने का सबसे उत्तम और सरल तरीका है भाषण के विचारों को लिखने का। लिखने से व्यवस्था और क्रम ठीक बन जाते हैं। विचारों को एकत्रित कर लिख डालें। बाद में उसे संक्षिप्त वाक्यों में एकत्रित कर लें। इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप जो विचार लिख रहे हैं उनमें एकता, सच्चाई होने के साथ ही तर्कशील भी होने चाहिए। भाषण का प्रारंभ और अंत प्रभावशाली हो।

कैसी हो पोशाक

भाषण के समय हमेशा उचित सहज पोशाक ही पहननी चाहिए। हमेशा चितकबरी पोशाक से बचें। भाषण के समय सोवर पोशाक ही पहनें।
प्रभावशाली भाषण के लिए विचार, उनकी समुचित व्यवस्था, भाषा, कंठ-स्वर, उच्चारण, अंग संचालन इत्यादि अति आवश्यक है।

मंच पर इस तरह जाएं

भाषण देने से पूर्व वक्त अकसर घबरा जाता है, उसके शरीर में कंपन होने लगता है जिसके कारण आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की कमी आ जाती है। इसके लिए वक्ता को यह सोचकर मंच पर जाना चाहिए कि सभी श्रोता मुझसे कमजोर है और मैं उनसे अधिक मेधावी हूं। इससे वक्ता को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास बना रहता है। वक्ता को पाठ मंच या मंच तक गतिमा सहज गति से चलकर जाना चाहिए। यदि मंच पर पाठ-मंच की व्यवस्था है तो उसके पीछे खड़ा होना चाहिए, नहीं है तो तब मंच के किनारे मध्य में खड़ा होना ठीक है। वक्ता को श्रोता की ओर देखने में कतराना नहीं चाहिए। वक्ता अपने श्रोता की तरफ मुखातिब हो, हर वक्त और हर दिशा में।
शुरुआत ऐसे करें
यदि सभा के मंच पर केवल एक अध्यक्ष हो तो केवल अध्यक्ष को और उपस्थित मित्रों को संबोधित करना चाहिए।  स्त्रियां, पुरुष दोनों हो तो पहले महिलाओं को फिर बाद सज्जन कहकर पुरुषों को संबोधित करना चाहिए। यदि मंच पर एक अध्यक्ष या वो भी नहीं और कई लोग बैठे हों तो पहले अध्यक्ष को संबोधित कर सभी को यह कहकर कि ‘मंच पर आसीन (विराजमान) विशिष्ट जन या हमारे विशिष्ट जन’ संबोधित करें। मूलमंत्र यह है कि किसी भी सभा में सबसे पहले अध्यक्ष को संबोधित करना चाहिए।
मंच पर इन बातों का रखें विशेष ख्याल
भाषण देने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि श्रोताओं को कौन-सी भाषा रुचिकर लगती है या लगेगी। भाषण में प्रवाह, गति और श्रोताओं तक अपने विचारों को पहुंचाने पर बल देना होता है। श्रोताओं की दिललचस्पी भाषण में बनी रहे, इस दृष्टि से भाषाओं में भावनाओं का मेल और मुहावरों की मीनाकारी का इस्तेमाल ठीक अनुपात में अच्छा रहता है। इसके लिए निम्नलिखित तथ्यों को अमल में लाएं -
(क) यदि आपने शब्द को कोई सीमित अर्थ देना हो तो उसकी परिभाषा देना आवश्यक है। उसके पर्यायवाची शब्द का प्रयोग या उसके विपरीत (उल्टा) मतलब समझाकर व्यक्त करना हितकर है।
(ख) अच्छे वक्ता प्राय किसी महान लेखक, कवि, विचारक, संत के उद्धरणों का प्रयोग करते हैं।
(ग) भाषण में सांकेतिक भाषा का उपयोग भी प्रभावशाली होता है। जैसे: किसी की शुरुआत के लिए श्री गणेश का नाम लेना, धनवान बताने के लिए कुबेर का, क्रोधी बताने के लिए दुर्वासा ऋषि, पवित्रता का गंगाजल से, ऊंचाई का हिमालय आदि से।
(घ) भाषण की विषय वस्तु को ध्यान में रखते हुए भाषण-प्रवाह की गति निर्धारित करनी चाहिए। समय की सीमा को ध्यान में रखते हुए, भाषण, विषय और भाषण प्रसंग को ध्यान में रखते हुए, उन्हीं विचारों को व्यवस्थित कर अभिव्यक्त करना चाहिए जिन पर वक्ता को विश्वास हो। एक बार फिर याद दिला दें कि भाषण कला में ईमानदारी का बहुत महत्व है।

भाषण पाठ का भाषण में उपयोग

लिखित भाषण को अच्छे स्वर में उपयुक्त गति से, उपयुक्त विराम चिन्ह के साथ पढ़ना चाहिए। जब कभी स्मरण-शक्ति सहायता न करे तब उन शीर्षकों या उपशीर्षकों की मदद से बोलना चाहिए। यदि फिर भी गाड़ी न चले तो पूरे भाषण का पठन कर दें।
भाषण पाठ को मानस में अंकित करने के कई मनोवैज्ञानिक तरीके हैं, लेकिन इसकी पहली महत्वपूर्ण सीढ़ी है भाषण बिंदुओं को और उनके क्रम को याद करना। हर बिंदु के कई पक्ष हो सकते हैं। भाषण देते समय यदि कुछ शब्द छूट जाएं या कुछ अंश किसी बिंदु के छूट जाएं तो भाषण की संपूर्ण रूपरेखा खराब नहीं   होती यहां यह याद रखना ठीक है कि सहन गति स्मरण शक्ति की कमी को अच्छी तरह पूरा कर देती है।

अंग संचालन

अंग संचालन, स्वाभाविक, सहज और सीमित ही होना चाहिए।

श्वास प्रक्रिया

इसे मोटे तरीके से यह समझ लें कि मनुष्य मुंह से ध्वनि कैसे पैदा करता है तो श्वास प्रक्रिया का महत्व आसानी से समझ में आ जाएगा।

कंठ का उपयोग

मनुष्य की गर्दन में एक कंठ होता है जिसमें दो होंठ होते हैं। जो खुलते और बंद होते हैं। जब उनके बीच से हवा या श्वास निकाला जाता है तब ध्वनि उत्पन्न होती है, स्वर बनता है। स्वर की ऊंच-नीच हवा के दबाव के नियंत्रण से होती है, इसलिए श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया का ध्वनि से गाढ़ा रिश्ता है। स्वर यंत्र कुदरत की देन है, लेकिन इसे ठीक और नियंत्रित किया जा सकता है। स्वर-यंत्र कभी तनाव से अवरुद्ध भी हो जाता है। कभी भी और किसी भी कारण यदि तनाव कम करने की आवश्यकता हो तो दीर्घ श्वास की प्रक्रिया हितकर होती है।

श्वास नियंत्रण

श्वास नियंत्रण से ध्वनि में उतार-चढ़ाव ही संभव नहीं, वक्ता को एक और लाभा भी संभव है। लंबे-लंबे वाक्यों में वक्ता विराम ले-ले कर बोलता है, लेकिन यदि वक्ता श्वास-प्रक्रिया मध्यपेट से श्वास लेने की आदत डाले तो उसे हांफन भी नहीं होगी और स्थिर स्वर में वह बोल सकेगा और जब स्वर ऊंचा-नीचा करना पड़ेगा, बल देने के लिए उसमें भी कठिनाई नहीं होगी।

स्वर पर नियंत्रण रखें

अच्छे उच्चारण के साथ-साथ स्वर नियंत्रण भी भाषण में रोचकता पैदा करता है। गायक जिस प्रकार स्वर ऊंचा-नीचा करता है कुशल वक्ता भी इस प्रक्रिया का प्रयोग करता है। स्वर से भाषण की भावप्रवणता का आभास मिलता है। भाषण-कला में स्वर-मान से बहुत सूक्ष्म बात श्रोताओं के समझाने में मिलती है। स्वर-नियंत्रण से व्यंग्य में भी जान आ जाती है। सहज स्वर के साथ-साथ स्वर स्तर को वक्ता अनुशासित करे तो स्वर से बहुत सेवा ली जा सकती है।

Friday, August 26, 2016

हेमलता खोरवाल

Veerbahadur Singhariya to प्रगतिशील रैगर
क्या रैगर समाज जागरूक है ?
राजस्थान के सबसेे बडे कालेज "राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर " जिसे राजनीति की खान भी कहते है जो इस विश्वविद्यालय से जीता है उसे राजनीति में प्रवेश मिला है से रैगर समाज की बेटी सुश्री हेमलता खोरवाल उपाध्यक्ष पद हेतु प्रत्याशी है
वैसे तो मैंने समाज की बडी बडी तोफो को आये दिन व्हाट्सऐप ओर फेसबुक पर रैगर समाज को टिकट देने की मांग करते देखा है
लगातार मांग का नतीजा ये रहा की राजस्थान के सबसे बडे कालेज से रैगर समाज की बेटी को मौका मिला है
आज हमें ये मौका हाथ से नही गुमाना चाहिए
रैगर समाज के सभी जागरूक समाजसेवी बुद्धिजीवियों से निवेदन है की कल 31 -08-2016 को राजस्थान विश्वविद्यालय में बहिन हेमलता खोरवाल को जिताने के लिए तन मन धन से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग व सपोर्ट जरूर करें
अभी नहीं तो कभी नहीं
ये मौका हाथ से निकल गया तो आने वाले समय में राजनैतिक पार्टियां यही कहेगी की हमने आपको मौका दिया आपने जीत कर नही दिखाया
इसलिये ऐसा न हो की आगे आने वाले दिनों में हमें राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिए भिख मांगनी पडे ओर गिडगिडाना पडे
हमारे समाज द्वारा जो लगातार राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मुहिम चलाई जा रही है उसकी ये अग्नि परीक्षा है
मेगवाल जाट राजपूत समाजो से सिखों किस तरह वे राजनीती में आगे बढे है उन्होंने कभी ये नही देखा की उनका आदमी कोनसी पार्टी से खडा है बस अर्जुन की भांति उन्होंने सिर्फ ये लक्ष्य रखा की सामने जो खडा है मेरी जाती का गौरव है ओर मुझे मेरे गौरव को बचाना है /उसे जीताना है सामने चाहे कोई भी हो
रियो ओलम्पिक में जब दो बेटी पदक लेकर आयी तो हमने खुब फोटो शेयर किये
क्या हमारी बेटी के लिए हमारे पास समय नहीं ?
हमारा भी लक्ष्य सिर्फ एक ही हेमलता खोरवाल रैगर समाज का गौरव है ओर इस गौरव को जीताना है
जाग सको तो सुबह तक का समय बहुत है ओर कल 31 अगस्त तारीख में आपके चंद घंटे समाज की बेटी के साथ रैगर समाज के सम्मान के लिए बहुत है
यही समझ लो की आप 31 /8/16 को अपनी बेटी हेमलता खोरवाल को परीक्षा दिलाने राजस्थान विश्वविद्यालय जा रहे है
आपकी बेटी कल आपकी राह देख रही है
एक शेयर अपनी समाज की बेटी के लिए
आपके समाज की बेटी आपके सपोर्ट की राह देख रही है
दिनांक 31/08/2016 कल
समय सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक
जागो रैगर जागो अपनी बेटी के सम्मान ओर गौरव के लिए जागो
ओर जो नहीं जाग सके उनके लिए बस इतना ही व्हाटस ऐप ओर फेसबुक पर समाज की एकता ओर जागरूकता के लिए भचेडे खाते रहना

कविता

बलात् कर्म हुआ, 
एक धीर चरित्र नारी से,
जतन सहस्त्र किये उसने ,
पर बच ना सकी अत्याचारी से,
जिस दिन यह काला काम हुआ ,
पुरूष कुल पूरा बदनाम हुआ

जिस पौरूष की महिमा, इतिहास ने गायी थी सदा अमर
उसी पौरूष ने आज समझो, खोदी थी अपनी ही कबर

अब कोई तुम्हारें बाजुओं की, यश गाथा नहीं गा पाएगा 
ऐसी यशगाथा गाने से, सर अतीत का भी झुक जाएगा
जिस नारी रक्षा का जिम्मा, लिया था हमने हाथ में 
उस नारी को बेच दिया हमने, काली अंधेरी रात में

अदालती तौर पर न्याय , मिल गया था उस नारी को
उम्रकैद की सजा भुगतनी थी, अब अत्याचारी को

अपराध बोध से दिल डोला ,
आँखों में आँसू लिये बोला,
“हाय! मैनें कैसा अत्याचार किया ,
कुल को अपने शर्मसार किया,

क्षणिक भावना के प्रवाह में, मैनें बेची अपनी खुद्दारी थी
खुद तो उम्रकैद पायी, उसकी भी अस्मिता उजाड़ी थी

न्याय मिला तो क्या हुआ ,
जीवन उसका तबाह हुआ,
जिस वक्त मदद समाज की उसने ज्यादा चाही थी ,
उसी समाज ने की उसे अब मनाही थी,

उस अत्याचारी पुरूष ने केवल, इक बार उससे बलात् किया
पर विष व्यंग्य के बाणों से, समाज ने सदा बलात् किया

“दोष मेरा कोई बतला दो ,
अपराध मुझे कोई समझा दो,
मैनें तो उसका प्रतिकार किया ,
जब उसने अत्याचार किया,


मैं अबला यथा सामथ्र्य, बचाव अपना कर पायी थी
पर उस भेडि़ये के चंगुल से, बच फिर भी ना पायी थी
बीच सड़क में जब, मैं घायल पड़ी थी लाचार
तब मैनें की थी पथिकों से, एक मदद की पुकार

मैं दर्द से हुँ मर रही ,
विनती सभी से कर रही,
पर वे ना कोई इंसान थे ,
लगते सारे पाषाण थे,

आज पड़ी मैं यहाँ पर, कल कोई होगा तुम्हारा अपना
अब सोच समझ कर करों, तुम मेरे दर्द की कल्पना
आज मुझे बचा लो तुम, इलाज मेरा तुम करवा दो
समय रहते मुझे कोई, अस्पताल तो पहुँचा दो

घंटो पड़ी रही इस आस में ,
आएगा कोई बचाव में,
टूट गया मेरा विश्वास ,
तब मैनंे ली एक अंतिम श्वास,
जो अब तक समाज की बेटी थी ,
वो मृत होकर अब लेटी थी,

मैनें पायी मौत दर्दनाक, नहीं अपने कर्मो से 
जिंदगी की जंग, मैं हारी थी बेशर्मों से
वों अत्याचारी केवल ना, सजा का हकदार था
यह समाज भी मेरी मौत का, बराबर हिस्सेदार था

मैं घायल पड़ी राह में, दी भगवान की मैने दुहाई थी
पर मेरी मदद की उन लोगो ने, जहमत नहीं उठाई थी
दूजे दिन उन्हीं लोगों ने, छिड़का नमक मेरे घावों पर
हाथ में मोमबत्ती लिये, वे निकल पड़े थें उन राहो पर।

----------------------------------------------

नफरतों के कांटे प्रेम से काटते चलो,
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।

आसमान में छाए रहेंगे सदा बादल श्वेत और श्याम,
दुःख के शूलों में से खुशियों के फूल छाँटते चलो।

अपनों से बैर ना रहे कभी जिंदगी में,
दूरियों की खाई को स्नेह से पाटते चलो।

गुरूर से न जीता है किसी ने दुनिया का,े
अपनों को जीता कर खुद को हारते चलों।

पैसे की दौड़ में अक्सर पीछे छूट जाते है अपने,
शोर से भरी दुनिया में अपनों को पुकारते चलो।

हर मोड़ पर दोराहा होता है मन के संसार में,
तम को नकार कर धर्म को स्वीकारते चलो।

बैठ कर रहने से मंजिले चल कर नहीं आएगी,
मेहनत के कर्मों से ख्वाबों को सँवारते चलों।

नफरतों के कांटे प्रेम से काटते चलो,
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।


------------------------------------------

तुमने दिए कांटे उन्हें मैं फूलों का उन्हें ताज पहनाउंगा
उलाहने जो मिले हमे उसी से जीवन साज बनाउंगा

कहते थे लोग कि तुम कल तक भी यह न कर पाओगे
तुम खुद देखों जरा इसी रोज इसे मैं आज कर जाउंगा

जिन जरूरतों कोे दबा कर तुम मालिक बन बैठे हो
उन्हीं जरूरतो को विरूद्ध तुम्हारें मै आवाज बनाउंगा

परों को काटने से कभी हौसलें नहीं झुका करते
गिरते हौसलों को फिर से मैं परवाज़ बनाउंगा

थमा था शोर जिंदगी का जिस राह जिस मोड़ पर
उसी शोर को दबे कदमों का विजयी आगाज बनाउंगा

टूट कर बिखरेगी जो वो माला मोतियों की होगी
बिखर के जो जुड़ेगा खुशियों का ऐसा समाज बनाउंगा

बिजलियां गिराने का हुनर फखत़ आसमां नहीं जानता “राम”
तख्ता पलट कर सके अपनी कलम से ऐसी गाज बरसाउंगा

--------------------------------------------------

१. विरह की इस शाम का एक खुबसूरत सवेरा हु 
प्रेम की इस खान का एक सिरफिरा पहेरा हु 
कलम के इस दीवाने के मुरीद होंगे लाखो मगर 
मै कल भी सिर्फ तेरा था मैं आज भी सिर्फ तेरा हु। 

२. दर्द न दर्द रहे गर हाथ में तेरा हाथ रहे 
   हर दिन सुहाना हो गर वक्त से ऊपर तेरा साथ रहे। 

३. प्रेम के इस समंदर में एक तुम ही मेरी आस हो 
    ज़िन्दगी से हु दूर लेकिन तुम ही दिल के पास हो 
    तेरे हर इम्तिहान को सर आँखों पर रखते है 
    क्योकि तुम ही मेरी श्रद्धा हो तुम ही मेरा विश्वास हो। 

४.  रग रग में है जो बिखरी वो खुशबु तुम्हारी है 
     मैदान इ इश्क़ की बाज़ी इस दिल ने भी हारी है 
     मुझे यु छोड़ जा बेशक भले पर भूल ना पाओगी 
     तेरे हर शिकवे पर भारी ये मोहब्ब्त हमारी है। 

------------------------------------------------------

जनता तुम जूते बरसाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है........
भ्रष्टो तुम शर्म से मर जाओ, नाक तुमने कटाया है.......

 
ओ काले कोयले की कालिख लगा इस झूठे चेहरे पर,
लाओ एक जूते की माला सजाओ इनके कांधो पर,
सैर इन्हे गधे पर करवाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....

बंधुओ बांध दो हर तरफ अब एक लोहे की चादर ,
बड़ा डरपोक नेता है चला जाये ना घबराकर ,
सैर इन्हे गांव में करवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....

सजायी है जवा दिलो ने अब यह माला जूतो की,
इन्हे मालूम था आएगी एक दिन रूत कपूतो की,
ढिंढोरा गांव में पिटवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है ........
भ्रष्टो तुम शर्म से मर जाओ, नाक तुमने कटाया है......


----------------------------------------------------------

1. वो यु ही खुद को होशियार समझते है,
इज्जत क्या मिली परवरदिगार समझते है, 
हैसियत उनकी क्या है वे खुद भी जानते है,
हम तो सिर्फ उनको चौकीदार समझते है.


2. यु डराकर कब तक चलोगे जनाब,
हिम्मत तो कभी देगी जवाब,
हम तो कोई दूसरी राह चुन लेंगे,
फिर पूरोगे कैसे तुम अपने ख्वाब.

-------------------------------------------

हे जीव रूप के शिरोमणि,
क्यों मानवता को कुचल रहा ?
क्यों गरल प्रवाह है उगल रहा,
हैं मानवता कर्तव्य तेरा, 
क्यों मानवता को निगल रहा.
हे जीव रूप के शिरोमणि.................

नारी जाति का एहसान रहा है,
माँ भगिनी जीवन संगिनी
तीनो रूपों की महिमा अनगिनी
जब तक इसका मान रहा है
इश्वर भी मेहरबान रहा है,
इनके मान-सम्मान का सदियों के एहसान का 
हैं रक्षा का कर्तव्य तुम्हारा ,
हे जीव रूप के शिरोमणि...................

सब एक शक्ति की संतान है,
वो भेदभाव से अनजान है,
तरुवर फल से सरोवर जल से 
सब की क्षुधा मिटाता है ,
है भिन्न अगर हम यथार्थ में,
तो ये भेदभाव क्यों नहीं जताता है,
सन्देश सभी धर्मो का मानव सब समान है,
हे जीव रूप के शिरोमणि.......................

परोपकार ही जीवन का मुख्य धर्म पालन है,
सर्वश्रेष्ठ था, सर्वश्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ तभी रह पायेगा,
जो शिरोमणि परिभाषा को यथार्थ में निभा पायेगा,
सच्चे अर्थो में वो ही आदर्श मानव कहलायेगा,
हे जीव रूप के शिरोमणि..................

-------------------------------------------------------------
सोचता तो होगा ख़ुदा ,मर्द बना कर कितनी गुस्ताखी की है उसने,
………. हर जगह अत्याचार , व्याभिचार का लगा दिया इन्होने बाज़ार!!
कहीं महिलाएं, बच्चियां तो कहीं, मासूम बच्चे हो रहे हैं इनके शिकार,
……………बहुत रोया होगा ,कई रातों न सोया होगा!!
इंसानियत के इन दुश्मनों को बना कर,
…………मर्द के रूप में हैवान दरिदों को धरती पर लाकर !!
काश ख़त्म हो जाये इनका धरती से वज़ूद ,
………. इन्हें कर दिया जाये नेस्तनाबूद,
नामर्दों को मिटा दिया जाये,
……….. फिर से धरा पर शांति, प्रेम, वफ़ा, करुणा बहाल हो जाये !!
*************************************************************************
//1//
कुछ कर गुजरने की गर तमन्ना उठती हो दिल में
भारत मा का नाम सजाओ दुनिया की महफिल में |
//2//
हर तूफान को मोड़ दे जो हिन्दोस्तान से टकराए
चाहे तेरा सीना हो छलनी तिरंगा उंचा ही लहराए |
//3//
बंद करो ये तुम आपस में खेलना अब खून की होली
उस मा को याद करो जिसने खून से चुन्नर भिगोली |
//4//
किसकी राह देख रहा , तुम खुद सिपाही बन जाना
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लढ पाना |
//5//
इतना ही कहेना काफी नही भारत हमारा मान है
अपना फ़र्ज़ निभाओ देश कहे हम उसकी शान है |
//6//
विकसित होता राष्ट्र हमारा , रंग लाती हर कुर्बानी है
फक्र से अपना परिचय देते,हम सारे हिन्दोस्तानी है |
किसकी राह देख रहा , तुम खुद सिपाही बन जाना
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लड़ पाना!