Tuesday, September 29, 2015

आरक्षण मूवी (क्लाल रूम का दृष्य)

साभार- आरक्षण मूवी (क्लाल रूम का दृष्य)
( श्याम पट्ट पर किसी शैतानी विधार्थी ने लिख दिया "आरक्षण हमारा जन्म सिद्द अधिकार है " क्लाल रूम मे विधार्थी आते है
लडकी- ओ गोड किसने लिखा है यह सब
मनुवादी लडका-ऐ किसने लिखा है यह सब है हिम्मत तो सामने आओ
मनुवादी लेक्चरर-नही मानेगे यह लोग डरपोक सांप के जैसा डसकर बिल मे घुस जाते है यह लोग अब तो कुछ करना पडेगा
दलित छात्र दीपक - जिसने भी किया है गलत किया है छोटू पानी ले आ एक बाल्टी
मनुवादी लडका - इसे मिटाने की कहा जरूरत है मिस्टर दीपक कुमार इसको बस थोडा सा बदल दिजिऐ आरछण के बदले लिख दिजीऐ "खैरात" खैरात तो हमारा जन्म सिद्द अधिकार है
मनुवादी लेक्चरर- पिछले 60 साल से sc/st आरछण और अब obc आरछण ,हमारे बच्चे दिन- रात रगड-रगड कर पढते रहै और जब एडमिशन का नम्बर आऐ तो खैरात लूट लिजिऐ आप लोग , डर लगता है ना ! मेहनत करने से
दलित छात्र दीपक-अच्छा हमे मेहनत का पाठ पढा रहै है आप ,हमने आज तक और किया क्या है? अरे भूल गये है तो पढ लिजिऐगा इतिहास कि कोन मेहनत करके कमाता रहा है और कोन खैरात समझ कर लूटता रहा है अरे सदियो से दक्षिणा ले लेकर भरली है अपनी पेटिया आप लोगो ने और हमसे खैरात की बात करते है आप के खेत जोते हमने,आपकी फसले काटी हमने ,आपके मवेशी चराऐ हमने,आपकी बेटियो की बीबीयो की डोलिया उठाई हमने,आपके मुर्दे जलाऐ,जूते सीले,बैल हाके,नाव चलाई ,आपके घरो की गन्दी नालियो की सफाई की हमने यहाॅ तक कि आपकी टट्टी तक सिर पर ढोयी हमने हमे सिखाओगे आप ??
मनुवादी लडका-ठीक कहा आपने इसी काबिल है आप ,इतनी ही ओकात है आपकी ,यही सटीक है यहाॅ देश के भबिष्य को बनाने की बात चल रही है ओर जो काबिल होगा उसी को मिलेगी यह जगह : मगर आप लोगो को तो सब कुछ फोकट मे चाहिऐ सच तो यह है कि कम्प्टीशन से डरते है आप
दलित छात्र दीपक - किस कम्प्टीशन की बात कर रहै है तुम ? वही जो आपने कभी करने नही दिया ,अरे हमारे लिऐ तो स्कूल के सारे दरवाजे ही बन्द थे : किसी तरह हम वहाॅ पहुच भी गये तो छाॅटकर अलग लाईन मे बैठा दिया गया: स्कूल तुम्हारे ,अस्पताल तुम्हारे,पुलिश स्टेशन तुम्हारे,सभी सुख -सुबिधाओ के सारे तंत्र तुम्हारे : पता है तुमने क्यो नही दिया हमे मोका कम्प्टीशन का ? , क्योकि तुम डरते हो बराबरी के कम्प्टीशन से ! हम नही !
मनुवादी लडका-इतिहास की आड मे अपनी कमजोरी मत छूपाओ तुम लोग, हमारी जनरेशन मे ऐसा कुछ नही होता है अगर हिम्मत है तो चेलेन्ज उठाओ और लडो मगर वह तुम करोगे नही क्योकि उसके लिऐ चाहिऐ मेरिट जो नही है तुम्हारे पास
दलित छात्र दीपक-करेगे मुकाबला मेरिट से भी तुम्हारा मगर रेस की स्टार्टिंग लाईन एक होनी चाहिऐ सभी के लिऐ जाओ पहले अपने बाप से कहो अपनी पुस्तैनी हवेली को छोडकर हमारे साथ बस्ती मे रहै और रोज सुबह कम्पनी की वर्दी चढाकर डाईवर,दर्वानी या चपरासी की नोकरी पर जाऐ ,अपनी मां से कहो कि अपने एयरकंडीसनर रासियाने से निकले और हमारी मांओ के साथ जाकर घर-2 छाडू वर्तन करे और अपनी बहिन से कहो रोज सबेरे आॅख खुलते ही मोहल्ले के एक मात्र मुंशीपल्टी के नल से एक घडा पानी भरके लाऐ : आओ हमारे साथ हमारी जिन्दगी चंखो , फिर बात करो , करेगै मुकाबला मेरिट से भी तुम्हारा जब तक नही करते जब तक अपनी बैहूदा जबान अपने पास रखो
पूरे सिनेमा हाॅल मे तालियो की गडगडाहट होती है
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क्यों 'वैदिक धर्म' को विश्व का कोई भी देश अपने यहाँ लागु नहीं कर सका?

•इतिहास उठाकर देखोगे तो समझ आएगा भारत में 'वैदिक धर्म' के नाम से बहुत से कार्य और अविष्कार इस देश और समाज में किये है, जिन्हें विश्व का कोई भी देश अपने यहाँ लागु नहीं कर सका ।
1. भारत में ही सर्वप्रथम वर्णव्यवस्था का आविष्कार हुआ, जिसने भारत को दो हजार वर्षों तक गुलाम बनाने में मुख्य भूमिका निभायी।
2. भारत में ही सर्वप्रथम सतीप्रथा का आविष्कार हुआ, जिसमे विधवा औरतों को जिन्दा जला दिया जाता था. इस प्रथा को ईस्ट इंडिया कम्पनी सरकार ने 1841 में कानून बनाकर बंद किया था।
3. भारत में ही सर्वप्रथम धर्म के नाम पर छुआछूत का आविष्कार हुआ था, जिसके द्वारा लाखों लोगों को अछूत बनाकर सभ्यता के प्रकाश से दूर रखा गया।
4. भारत में ही सर्वप्रथम धर्म के नाम पर गाय, बैलों और घोड़ों की बलि देने की प्रथा और यज्ञों में औरतों को जानवरों के साथ संभोग करवाने जैसें पाशविक आविष्कार हुए ।
5. भारत में ही सर्वप्रथम धर्म के नाम पर नरबलि की प्रथा का आविष्कार किया गया।
6. भारत में ही सर्वप्रथम दासप्रथा का भी आविष्कार हुआ।
7. भारत में ही सर्वप्रथम धर्म के नाम पर निष्ठुर प्रथा गंगा-प्रवाह का आविष्कार हुआ था, जिसमे मनौती पूरी होने पर लोग अपनी पहली संतान को गंगा-सागर में छोड़ देते थे. इस क्रूर प्रथा को कम्पनी सरकार ने 1835 में कानून बनाकर बंद किया था।
8. भारत में ही सर्वप्रथम धर्म के नाम पर चरक-पूजा का आविष्कार हुआ था, जिसमे मोक्ष के इच्छुक उपासक के मेरुदंड में दो लोहे के हुक धंसाकर उसे रस्सी के द्वारा चरखी के एक छोर से लटका देते थे और दूसरे छोर से उसे तब तक नचाते थे, जब तक उसके प्राण नहीं निकल जाते थे. इस प्रथा को ब्रिटिश सरकार ने 1863 में कानून द्वारा बंद किया था।
9. भारत में ही सर्वप्रथम कर्मफल आधारित पुनर्जन्म के सिद्धांत का आविष्कार हुआ, जिसने गरीबों के शोषण का क्रूर तन्त्र विकसित किया।
10. भारत में ही सर्वप्रथम सनातन धर्म के नाम पर एक ऐसे धर्म का आविष्कार किया गया, जिसमे समानता के लिए कोई जगह नहीं है।
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बौध्द होने के फायदों की लिस्ट-

बौध्द होने के फायदों की लिस्ट-
1- किसी भूत प्रेत, पीपल बरगद से डर नहीं लगता।
2-सांप बिच्छू तक से डर ख़त्म हो गया है प्यार बढ़ गया है।
3- पूजा पाठ- कथा प्रवचन में चवन्नी खर्च नहीं होती।
4- गाय और कुत्ते पर एक समान प्यार आता है।
5- अपने किये अच्छे काम का क्रेडिट खुद लेता हूँ और गलती को हरि इच्छा न मान कर आगे दोहराने से परहेज करता हूँ।
6- बिल्ली या नेवले के रास्ता काट जाने पर, घर से निकलते ही छींक आने पर या खाली बाल्टी देख कर वापस नहीं लौटना पड़ता।
7- किसी कार्य की संभावित सफलता के लिए किसी देवी देवता को तेल लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।
8- गंदगी और बदबू भरे गंगा जल में नहाने की मजबूरी नहीं झेलनी पड़ती।
9- कोई भी शुभ काम शुरू करने के लिए सत्य नारायण की कथा सुनके अनुमति नहीं लेनी पड़ती।
10- नरक में जाने के डर से हर चबूतरे, देवोत्थान, लाल झंडा लगाए जगह पर सर नहीं झुकाना पड़ता।
11- 11, 21, 51 जैसी शुभ संख्याओं से कुछ लेना देना नहीं।
12- सुब्बे सुब्बे अखबार में राशिफल देख कर अपने दिन का शेड्यूल नहीं बनाना पड़ता।
13- ज़िन्दगी मस्ती से कट रही है छोटी छोटी खुशियों में बड़ा बड़ा मजा लेते हुए। एक और सबसे ख़ास
14- किसी को भी जाति, लिंग, नागरिकता, रंग, क्षेत्र, अमीरी गरीबी के आधार पर अलग नहीं समझता। इंसान को सिर्फ इंसान समझता हूँ नुकसान :- सबसे बड़ा नुकसान तो यही है कि मेरे स्वर्ग का टिकट कैंसिल हो गया।
क्योंकि हम लोग धरती पर हि स्वर्ग मनाते है..,
किसी को सहमत असहमत होने के लिए जबरदस्ती नही कराता बस यही लाइफ स्टाइल है

दासता ,षड़यन्त्र व भ्रष्टाचार के ग्रन्थ व शास्त्र

दासता ,षड़यन्त्र व भ्रष्टाचार के ग्रन्थ व शास्त्र
१- यह जो ब्राम्हण,छत्रिय,वैश्य व शुद्र चारो वर्णो का जो विभाजन है वह मेरे द्वरा ही रचा गया है |
(गीता ४/१३)
२- मेरी शरण मे आकर स्त्री,वैश्य व शुद्र भी जिनकी उत्पत्ति पाप योनि से हुई है| परमगति को प्रप्त हो जाते है |
(भगवतगीता ९/३२)
३- शुद्र का प्रमुख कार्य तीनो वर्णो की सेवा करना है |
(महाभारत ४/५०/६)
४- शुद्र को वंचित धन से स्वामी की सेवा करनी चाहिए |
५- शुद्र तपस्या करे तो राज्य निर्धनता मे डुब जायेगा |
(वाल्मिकी रामायण ७(३०)/७४)
६- इन्द्र ने कहा मैने दस्युओ , राछसो तथा शुद्रो को आर्य कहलाना बन्द कर दिया है |
(त्रटग्वेद १०/४९/८)
८- ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी
शकल ताड़ना के अधिकारी |
(रामचरित मानस ६६/५)
९- पुजिअ विप्र शील, गुन हीना |
सुदन गुन गन ग्यान प्रवीना||
(रामचरित मानस ६३/१)
१०- वह शुद्र जो की ब्राम्हण के चरणो का धोवन पीता है राजा उससे कर न ले |
(आस्तन धर्मसुत्र १,२,५/१६)
११- बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेढक, कुत्ता, गोह, उल्लू किसी एक ही हत्या पर शुद्र की हत्या का प्रायश्चित करे |
(अत्रि स्मृति ११/१३१)
१२- जिस गाय का दुध अग्निहोत्र के काम आवे उसे शुद्र न छुए |
(कथक सहिंता ३/१/२)
१३- शुद्रो को समस्त वेदाध्यन का निषेध है |
(वशिष्ठ धर्मसुत्र १८/१२/११)
१४- चण्डाल को देखकर सुर्य के दर्शन करे, तब वह शुध्द होता है | चण्डाल का स्पर्श होने पर वस्त्रो सहित स्नान करे |
(पराशर स्मृति ६/२४)
१५- शुद्र को सोमरस पिलाना वर्जित है |
(ऐतरेय ब्राम्हण १६/३/३१)
१६- शुद्र केवल दुसरो का सेवक है इसके अतिरिक्त उसका कोई अधिकार है |
(ऐतरेय ब्राम्हण २/२९/४)
१७- यदि कोई ब्राम्हण किसी शुद्र को शिछा दे तो उस ब्राम्हण को चण्डाल की ही भाति त्याग देना चाहिए |
(स्कन्द पुराण १०/१९)
१८- यदि कोई शुद्र वेद सुन ले तो पिघला हुआ शीशा तथा लाख उसके कानो मे डलवा देना चाहिए | यदि वह वेद का उच्चारण करे तो ॉउसकी जीभ कटवा देनी चाहिए और यदि वेद का स्मरण करे तो उसको मरवा देना चाहिए|
(गौतम धर्मसुत्र १२/६)
१९- जो सदकर्म करते है वे ब्राम्हण, छत्रिय व वैश्य-इन श्रेष्ठ जातियो को प्राप्त होते है व जो दुष्कर्म करते है वे कुत्ते, सुअर या शुद्र जाति को प्राप्त होते है |
(छान्दोग्य उपनिषद ५/१०/७)
२०- देव यग्य व श्राध्द मे शुद्र को बुलाने का दण्ड सौ पाप है |
(विष्णु स्मृति ५/११५)
२१- ब्राम्हण कान तक उठा कर प्रणाम करे, छत्रिय वछस्थल तक, वैश्य कमर तक व शुद्र हाथ जोड़कर व नीचे झुककर |
(आपस्तब धर्मसुत्र १२५/१६)
२२- जो शुद्र अपने प्राण,धन तथा स्त्री को ब्राम्हण को अर्पित कर दे उस शुद्र का भोजन ग्राहय है |
(विष्णु पुराण ५/११)
२३- ब्राम्हण की उत्पत्ति देवताओ से व शुद्रो की उत्पत्ति असुरो से हुई है |
(तैतरीय ब्राम्हण १/२/६/७)
२४- यदि शुद्र जप, होम आदि शुभ कर्म करे तो वह राजा द्वारा दण्डनीय है |
(गौतम धर्मसुत्र १२/४/९)
२५- यग्य करते समय शुद्र से बात नही करनी चाहिए |
(शतपत ब्राम्हण ३/१/१०)
📚सब ग्रन्थो मे हमारा अपमान📚
📚सब ग्रन्थ हमारी दासता के स्त्रोत📚


आरक्षण तो हिन्दू वर्ण व्यवस्था की देन है ।
हिन्दू वर्णव्यवस्था कहती है ,
ब्राह्मणों को पूजापाठ करना चाहिए और क्षत्रिय को रक्षा करनी चाहिए ।
और वैश्य को व्यवसाय करना चाहिए।
और शुद्रो को सेवा करनी चाहिए ।

इसलिए ब्राह्मणों पूजापाठ करो ।
वैश्य व्यवसाय करे ।
क्षत्रिय आर्मी में या पुलिस सेवा में काम करे ।
और बाकि सारी नौकरियां चाहे सरकारी हो या प्राइवेट हो SC-ST-OBC को मिले ।100% मिले ।
क्यों की यही तो उनकाधर्म कह रहा है ।

Monday, September 28, 2015

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।

नमन इस वीर योध्दा को॥

'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,
सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।

जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,
उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्भुत वीर।

तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का
अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक्
अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।

अलग नगर के कोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,
कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से।
निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,
वन्यकुसुम-सा खिला जग की आँखों से दूर।

नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।
समझे कौन रहस्य ? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल।

जलद-पटल में छिपा, किन्तु रवि कब तक रह सकता है?
युग की अवहेलना शूरमा कब तक सह सकता है?
पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,
फूट पड़ी सबके समक्ष पौरुष की पहली आग।

रंग-भूमि में अर्जुन था जब समाँ अनोखा बाँधे,
बढ़ा भीड़-भीतर से सहसा कर्ण शरासन साधे।
कहता हुआ, 'तालियों से क्या रहा गर्व में फूल?
अर्जुन! तेरा सुयश अभी क्षण में होता है धूल।'

'तूने जो-जो किया, उसे मैं भी दिखला सकता हूँ,
चाहे तो कुछ नयी कलाएँ भी सिखला सकता हूँ।
आँख खोल कर देख, कर्ण के हाथों का व्यापार,
फूले सस्ता सुयश प्राप्त कर, उस नर को धिक्कार।'

इस प्रकार कह लगा दिखाने कर्ण कलाएँ रण की,
सभा स्तब्ध रह गयी, गयी रह आँख टँगी जन-जन की।
मन्त्र-मुग्ध-सा मौन चतुर्दिक् जन का पारावार,
गूँज रही थी मात्र कर्ण की धन्वा की टंकार।

फिरा कर्ण, त्यों 'साधु-साधु' कह उठे सकल नर-
नारी,
राजवंश के नेताओं पर पड़ी विपद् अति भारी।
द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास,
एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए, 'वीर! शाबाश !'

द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,
अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा।
कृपाचार्य ने कहा- 'सुनो हे वीर युवक अनजान'
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।

'क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा,
जिस-तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?
अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन,
नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो
कौन?'

'जाति! हाय री जाति !' कर्ण का हृदय क्षोभ से
डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला
'जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।

'ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।

'मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।

Tuesday, September 15, 2015

Did you know that kissing activity has many health benefits?

13 Feb(kissing day) It is said that first kiss is always remembered as kissing is an activity in which most individual enjoy, imagine kissing your way for the better health. Kissing is passion and romance and what keeps people together. Stress relief is another health benefit of kissing. It stops the buzz in your mind, it quells anxiety, and it heightens the experience of being present in the moment.
Aside from expressing emotions and love, did you know that kissing activity has many health benefits?
When people kiss each other, they release their stress levels making them feel more comfort and peace of mind. It has mental and oral health benefits. Below is the best information of what kissing can do to improve your health.
Burn Calories
Kissing burns calories, which translates to weight loss. A 20-minute make-out session on your couch burns 40 calories, and it is way more fun than hitting the treadmill.
Aerobic for Heart
Kissing is an adrenaline producing activity. Adrenaline causes the heart to get pumping and increase blood circulation. The effects kissing has on your heart is essentially very similar to getting your heart going by aerobic exercise like running or bicycling.
Increase Immune
Kissing boosts your immunity. All that swapping spit exchanges germs, too, which forces your body to produce antibodies to prevent you from getting sick. It works like getting a vaccination, so keep the kisses coming in order to keep you healthy.
Look Young Forever
Kissing is a workout for your face. Kissing requires use of thirty different facial muscles. A kissing session will tone your face and keep the blood circulating. Good circulation in your face is one of the easiest, most inexpensive ways to stay young-looking and eliminate the appearance of lines and wrinkles.
Work as Antibiotics
During a kissing activity, exchange of saliva can create a natural anti-biotic which helps prevents stomach pains and bladder infections.
Stress Buster
Kissing has been known to reduce anxiety and stop any feelings of being overwhelmed. Kissing increases oxytocin. Oxytocin is a calming hormone which promotes the feeling of tranquility. If it has been a long day or you have something on your mind, grab your significant other and calm down.

Monday, September 14, 2015

समाज का प्रतिनिधित्व

सच तो ये है की हम हिदुस्तानी सत्ता, सूरा , सुंदरी के वासना में लिप्त होकर खुद की पहचान भूल चुके इसलिए सत्य क्या है इसका निंर्णय नहीं कर पा रहे है। हम भेड़ की चाल चल रहे है क्योकि एक भेंड़ जिधर जाता भेंड़ का पूरा झुण्ड भी उधर ही भागता है। आज समाज में जो वातावरण बच्चों को मिल रहा है, वहाँ नैतिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्यों को महत्त्व दिया जाता है, जहाँ एक अच्छा इंसान बनने की तैयारी की जगह वह एक धनवान, सत्तावान समृद्धिवान बनने की हर कला सीखने के लिए प्रेरित हो रहा है ताकि समाज में उसकी एक ‘स्टेटस’ बन सके। माता-पिता भी उसी दिशा में उसे बचपन से तैयार करने लगते हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं का अधिक से अधिक अर्जन ही व्यक्तित्व विकास का मानदंड बन गया है। भारतवर्ष यदि हठ से जबरन अपने को यूरोपीय आदर्श का अनुगामी बनाएँ, तो वह यूरोप नहीं बन सकता, सिर्फ विकृत भारतवर्ष ही बन सकता है। भारतवर्ष यदि असली भारतवर्ष न बन सकें तो दूसरों के बाजारों में मजदूरी करने के सिवा संसार में उसकी और कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी। पहले लोग मानसिक रूप से दृढ़ होने के लिये विद्याध्ययन करते थे। कालांतर में विषयों में आसक्त होने पर सुख प्राप्त करने के लिये उसका अनुकरण किया। आखिर सामान्य लोगों की समस्या किसी विशिष्ट श्रेणी के लोग न तो समझ सकते हैं और न ही उनका समाधान करने में सक्षम हैं क्योंकि उनके लिए महत्वपूर्ण की प्राथमिकताएं अलग है ; चूँकि समस्या हमारी है तो समाधान भी हमें खोजना होगा, ऐसे में संभव है की कई बार प्रयोग के प्रयास का परिणाम मनोवांछित न हो, ऐसी परिस्थिति को विकास की प्रक्रिया का एक चरण मानकर परिणाम से अधिक प्रयास की निष्ठां को महत्वपूर्ण मानना समाज के लिए श्रेयस्कर होगा !" 

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"एक बार जंगल में गधों की फ़ौज और शेरों की फ़ौज में जंग छिड़ गयी और गधों की फ़ौज ने शेरों की फ़ौज को हरा दिया; बाद में पता चला, वास्तव में गधों की फ़ौज का नेतृत्व करने वाला अपने चरित्र और व्यवहार से शेर था और शेरों की फ़ौज ने एक गधे को अपना नेता चुन लिया था; जैसे ही युद्ध शुरू हुआ, गधों की फ़ौज का नेतृत्व करते नेता ने अपने सैनिकों को आक्रमण का आदेश दिया जिसे सुन शेरों की फ़ौज का नेतृत्व करने वाले गधे ने अपनी प्रवृति और स्वाभाव अनुरूप अपनी सेना को कहा 'भागो' ; और इस तरह गधों की फ़ौज ने शेरों की सेना को हरा दिया। समाज का नेतृत्व एक महत्वपूर्ण दाइत्व है क्योंकि यही वह करक है जो समाज की नियति निर्धारित करता है ; अतः समाज जिसे भी अपने प्रतिनिधित्व के लिए नेता के रूप में चुने , आवश्यक है की उस व्यक्ति की प्रवृति , विचार , दृष्टिकोण, दूरदर्शिता और निर्णय लेने की क्षमता से अवगत व संतुष्ट हो ; क्योंकि वर्त्तमान के निर्णय की दिशा ही भविष्य की दशा तय करेगी ; सत्ता तंत्र के प्रावधान ने समाज के प्रतिनिधि को पदों के माध्यम से उन समस्त संसाधनों और सामर्थों से परिपूर्ण किया है जिसमे इतनी शक्ति है की वह जीवन की दशा और समय की दिशा बदल सके; बस प्रयोग का औचित्य ही संसाधन की उपयोगिता, महत्व एवं प्रभाव निर्धारित करता है। इसीलिए , समाज अपने सचेतन निर्णय से किसे अपने प्रतिनिधि के रूप में नेतृत्व के लिए चुनता है यह महत्वपूर्ण है। एक कुशल नेता वही है जिसको व्यक्ति के महत्व और पद की गरिमा के बीच का अंतर स्पष्ट हो तभी किसी भी परिस्थिति में वह अपने व्यक्तित्व को अपना पद समझने की भूल नहीं करेगा और प्राथमिकताओं का महत्व व्यक्तिगत आकांक्षाओं से ग्रसित नहीं होगा ; सत्ता तंत्र सामजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का उपक्रम मात्र है; अतः जब तक सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन को सुनिश्चित नहीं किया जाता, सत्ता परिवर्तन बस एक प्रभावहीन प्रक्रिया बनकर रह जायेगी ! समाज का प्रतिनिधित्व करते नेता समाज में व्याप्त बहुमत की मानसिकता को प्रतिबिंबित करते यथार्थ के तथ्य हैं ; अतः नेताओं के नैतिकता के स्तर से शिकायत व्यर्थ है ; प्रतिबिंब नहीं बल्कि सत्य का वास्तविक छवि ध्यान का केंद्र बिंदु होना चाहिए क्योंकि जैसा समाज होगा वह वैसे ही नेतृत्व का भागी होगा। व्यवस्था परिवर्तन तब तक संभव नहीं जब तक समाज का प्रत्येक इकाई जागृत न हो ; स्वयं का ज्ञान करना होगा; व्यक्तिगत लाभ , आकांक्षा, लोभ और स्वार्थ से ऊपर उठकर सही और गलत के बीच अंतर करना होगा तथा अपने निर्णय , आचरण एवं व्यव्हार से सत्य की स्थापना में पूरी निष्ठां से यथा संभव योगदान करना होगा; तभी हम एक आदर्श सामजिक व्यवस्था की स्थापना कर पाएंगे। आदर्श सामजिक व्यवस्था की स्थापना आवश्यक है क्योंकि भौतिक धन सम्पदा से संपन्न समाज संभव है की भ्रष्ट हो पर इतिहास साक्षी है की एक आदर्श सामाज निश्चित रूप से समृद्ध व् संपन्न होता है। भविष्य कैसा हो यह निर्णय करने का अधिकार वर्त्तमान का होता है पर अगर वर्त्तमान की सोच व्यक्तिगत जीवनकाल की अवधि तक सीमित रहकर जीवन की सम्पन्नता की आकांक्षाओं द्वारा शाषित हो तो निर्णय का आधार सही हो ही नहीं सकता ; और जब प्रयास की दिशा ही गलत हो तो परिणाम पर प्रयास की निष्ठां का प्रभाव नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए आज जीवन का यही प्रश्न है ! वर्त्तमान होने के नाते वर्त्तमान की चुनौती हमारा दाइत्व है; हमारा निर्णय ही हमारे जीवन की उपयोगिता सिद्ध करेगा और यही इस जीवन का महत्व होगा। क्यों न हम सत्य को महत्वपूर्ण बनाएं, ऐसा कर के हम भविष्य को ऐसी विशिष्ट जीवन शैली उत्तरदान में दे पाएंगे जो अपने आप में आदर्श का उदहारण होगा।"

तीतर


Friday, September 11, 2015

विश्व की उत्पत्ति के बारे में

दोस्तों, ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में विश्व की उत्पत्ति के बारे में लिखा गया है। इस श्लोक के मुताबिक ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रिय बाहुसे, जांघ (Thighs) से वैश्य और पैरों से शुद्रउत्पन हुए, लेकिन कैसे उत्पन्न हुएहै ये नहीं बताया गया है। वो कौन सी तकनीक थी ये आज भी बहुत बड़ा
रहस्य है। अगर इन ब्राहमण विद्वानों से पूछा जाये तो कहते है धर्म के साथ तर्क नहीं करते सिर्फ आँखे मुंद कर धर्म को मानना चाहिए, लेकिन क्यों? ये भी किसी को पता नहीं है। अछूतों अर्थात शूद्रों की उत्पति असल में मनुस्मृति से हुई है।
जब 1600 ईसवी में मनु महाराज ने मनु स्मृति के रचना की तो उस में सभी मूलनिवासियों को शुद्र कहा गया और सभी मूलनिवासियों को 6743
जातियों में बांटा गया ताकि कभी भी मूलनिवासी या शुद्र ब्राह्मणों के खिलाफ सर ना उठा सके। उस समय देश में बौद्ध धर्म का बोल बाला था और
बहुत से लोग जातिवाद या मनुवाद को नहीं मानते थे। मूलनिवासी समता के साथ जीना सिख रहे थे। जो लोग समता और समानता के साथ जी
रहे थे उन्ही को शुद्र और अछूत कहा गया। मनुसृत्ति और पुरुष सूक्त दोनों में भी औरत जात का निर्माणकैसे हुआ है ये नहीं बताया गया है। क्योकि उस समय औरतों को सिर्फ भोग की वस्तु समझा जाता था। औरतों के शोषण के लिए हजारों प्रथाएं और परम्पराए देश में प्रचलित थी।
तो औरतों पर ध्यान देने का कोई विचार ब्राह्मणों के मन में आया ही नहीं। और औरत जात का शोषण आज भी जारी है।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के मुताबिक ब्राह्मण को पढ़ने-पढ़ाने और धर्म गुरु बनने का अधिकार,क्षत्रिय को राज करने का अधिकार, वैश्यों को व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया। लेकिन शूद्रों को सिर्फ इन तीनों वर्णों की सेवा का आदेश सुना दिया गया। जो भी वर्ग अपनाकाम ठीक तरह से नहीं करता था उसके लिए दंड के प्रावधान किया गया था। खासकर शुद्रो केलिए वे दंड बहुत ही अमानवीय थे। आज भी देश के बहुत से हिस्सों में
मूलनिवासियों पर ब्राह्मणों के अत्याचारों का सिलसिला जारी है।
क्या ये व्यवस्था विश्व में सबसे अच्छी थी ? अगर थी तो फिर ये अन्यदेशों में क्यों नहीं पायी जाती है ?अगर भारत के लोगों का निर्माण ब्रह्मा के शरीर से हुआ है तो अफ्रीकन, अमेरिकन,जापानीज आदि लोग बिना किसी ब्रह्मा के कैसे पैदा हो गए?क्या ब्रह्मा की सृष्टि का ज्ञान सिर्फ भारत तक ही सीमित था? अगर सीमित था तो फिर उसको भगवान् कैसे मान सकते है? और ब्रह्मा को सिर्फ भारत के 1 अरब 30 करोड लोगों में से सिर्फ
ब्रह्माणी या हिंदू धर्म को मानने वाले लोग ही जानते है जो मुश्किल से 80 करोड भी नहीं होंगे। बाकि पुरे विश्व के 8 अरब लोग बेबकुफ़ है क्या?
चलो अब जानते है इनके कर्म का क्या परिणाम के बारे में : ब्राह्मण को ही सिर्फ पढ़ने पढ़ाने का अधिकार था इसलिए आज दुनिया कि 200 सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में आज एक भी भारतीय विद्यालय शामिल नहीं है।देश कि 65 करोड़ से भी ज्यादा आबादी को पढ़ना लिखना तक नहीं
आता है। कोई भीमहत्वपूर्ण आविष्कार जैसे कि टेलीफोन, कंप्यूटर, मोबाइल, साइकिल, कपड़ा इत्यादि से लेकर शौचालय के कामोड काआविष्कार तक विदेश में हुआ है, आज तक भारत में एक भी अविष्कार नहीं हुआ। क्षत्रिय राजा जो कि ब्रह्मा के बाहु से पैदा हुए ये खुदका राज्य बचाने में असफल रहे।
अफगानिस्तान, तुर्कस्तान से आये कुछ मुगलों ने और यूरोप से आये अंग्रेजों ने इन क्षत्रिय राजाओं की सही औकात दिखा दी। आज भी इन तथाकथित क्षत्रियों के हालात ज्यादा अच्छे नहीं है। बस अपनी झूठी शान का दिखावा करते रहते है। लड़ाइयों में सर कटवाए इन क्षत्रियों ने और धर्म का डर दिखा कर राज किया ब्राह्मणों ने। असल में देखा जाये तो आज की तारीख में इन क्षत्रियों से ज्यादा दीन हीन शुद्र भी नहीं है। शुद्र भी
तार्किक बुद्धि का प्रयोग करना सिख रहे है लेकिन इन क्षत्रियों के पास आज भी ब्राह्मणों की बात मानने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है। ब्राहमणों ने हर क्षेत्र शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय आदि से इन क्षत्रियों को दूध में पड़ी मख्खी की तरह बाहर निकल के फेंक दिया है। और ये तथाकथित क्षत्रिय आज धोबी के कुत्ते बन गए है ना घर के ना घाट के।
वैश्यों के व्यापार ने इस समाज का भरपूर शोषण किया, साहूकारी, ब्याज बढ़ा के लोगों पर कर्ज बढ़ाया, कर्ज ना देने की स्थिति में उनकी
जायदाद परकब्जा किया और उनकी हजारों पीढ़ियों को गरीबी में धकेल दिया। मानते है एक समय इन वैश्यों ने मूलनिवासी शूद्रों पर मनमाने
अत्याचार किये है, लेकिन आज की तारीख में वैश्यों की हालत भी धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है ना घर के ना घाट के। लेकिन फिर भी ब्राह्मणों की बातों का अनुसरण करने के सिवा इनके पास भी कोई दूसरा चारा नहीं है।
और शुद्र के बारे में क्या लिखना जिनको इन तीनो वर्णो कि सेवा करने के अधिकार के सिवा और कुछ नहीं दिया गया था। खेत में काम करना, मेहनत मजदूरी करना ये सब इनका काम था। अगर नहीं करते तो इनकी जीवा (tongue) काटना, इनके कानमें शीशा पिघला कर डालना, उनकी आँखे निकलना, उनकी गर्दन काटना जैसी शिक्षाये मनुस्मृति में लिखी गयी है।
हमारे पूर्वजों पर इन ब्राहमणों, राजपूतों और वैश्यों ने मन चाहे जुल्म किये, ऐसा नहीं है कि हमारे समाज के लोगों को सचाई पता नहीं है लेकिन धर्म और जाति के जाल में उलझे मूलनिवासी पत्थरों के भगवानों और देवी देवताओं के डर से चुप बैठे हुए है। हिंदू ना होते हुए भी ब्राह्मणों के आदेशों का अनुसरण कर रहे है। और ऋग्वेद के पुरुष सूक्त कोआगे बढ़ाने का काम कर रहे है ।
दोस्तों, इस सब बातों से यह साबित होता है कि इन विदेशी आर्यों ने देश को लुटने, मूलनिवासी शूद्रों का शोषण करने के सिवा आज तक कुछ नहीं
किया। आज भी मूलनिवासी शूद्रों को बेबकुफ़ बना कर देश में 90% सरकारी नौकरियों पर कब्ज़ा किये बैठे है। देश के शीर्ष से लेकर निचे तक सभी महत्वपूर्ण पदों पर सिर्फ ब्राहमणों का कब्ज़ा है। आज तक देश का कोई भी प्रधान मंत्री शुद्र नहीं बना क्योकि ब्राहमण ये होने नहीं देना चाहते। नेवी, आर्मी से लेकर वायु सेना के शीर्ष पदों पर सिर्फ ब्राहमण ही विराजमान है। यहाँ तक की क्षत्रियों और वैश्यों को भी यह अधिकार नहीं है की वो देश के शीर्ष पदों पर रह सके। दोस्तों, क्या यह ब्राह्मणों की एक सोची समझी चाल नहीं है? आज भी धर्म और जाति के नाम पर देश में हर मूलनिवासी का शोषण हो रहा है। देश की हर बहु बेटी का शोषण हो रहा है। DNA Research Report 2001 के मुताबिक भारत की सभी औरतों का DNA 100%
एक है और शूद्रों के DNA से 100% मिलाता है। जिस से सिद्ध होता है कि देश की सभी औरते और लडकियां शुद्र है। इसीलिए ब्राह्मण या हिंदू धर्म में औरतों को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है और भारत की महिलाएं गुलामों जैसा जीवन जीने पर विवश है।

Thursday, September 10, 2015

अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया

✒ अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया?
1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी।
6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।
3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)
4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।
5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।
6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया (1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नही होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)
7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी
पड़ती थी।)
8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व् पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था।)
9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
10-1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।
11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे।
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणों के कहने से शुद्र अपनी लडकियों को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो में चल रही है।
16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।
17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।
18- 1854 में अंग्रेजों ने 3 विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।
19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लॉ लागु कर दिया।
20- 1863 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था इस पूजा में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।
21- 1867 में बहू विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगा दी।
23- 1872 में सिविल मैरिज एक्ट द्वारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाई।
24- अंग्रेजों ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियों को सेना में भर्ती किया लेकिन 1892 में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।
25- रैयत वाणी पद्धति अंग्रेजों ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया।
26- 1918 में साऊथ बरो कमेटी को भारत में अंग्रेजों ने भेजा। यह कमेटी भारत में सभी जातियों का विधि मण्डल (कानून बनाने की संस्था) में भागीदारी के लिए आया था। शाहू जी महाराज के कहने पर पिछङो के नेता भाष्कर राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा अम्बेडकर ने अपने लोगों को विधि मण्डल में भागीदारी के लिये मेमोरेंडम दिया।
27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।
28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी और कहा था की इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है।
29- 25 दिसम्बर 1927 को डा अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया।
30- 1 मार्च 1930 को डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया।
31- 1927 को अंग्रेजों ने कानून बनाकर शुद्रों को सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।
32- नवम्बर 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की।जो 1928 में भारत के लोगों को अतिरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगों को अंग्रेज अधिकार न दे सके इसलिए इस कमीशन के भारत पहुँचते ही गांधी ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। जिस कारण साइमन कमीशन अधूरी रिपोर्ट लेकर वापस चला गया। इस पर अंतिम फैसले के लिए अंग्रेजों ने भारतीय प्रतिनिधियों को 12 नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया।
33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजों ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमें प्रमुख अधिकार निम्न दिए----
A--वयस्क मताधिकार
B--विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार
C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानों की तरह अछूतों को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रों में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगें।
D--प्रतिनिधियों को चुनने के लिए दो बार वोट का अधिकार मिला जिसमें एक बार सिर्फ अपने प्रतिनिधियों को वोट देंगे दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे।
34- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई। जिसके बाद अंग्रेजों ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।
35- अंग्रेजों ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 तक डाॅ अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।
36-- 1937 में अंग्रेजों ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया।
37-- 1942 में अंग्रेजों से डा अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवम् पिछङो में बाट देने के लिए अपील किया । अंग्रेजों ने 20 वर्षों की समय सीमा तय किया था।
38- अंग्रेजों ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी को 100% से 2.5% पर लाकर खड़ा कर दिया था।
जय भीम जय प्रबुद्ध भारत ।
डॉ दशरथ कुमार हिनूनिया
प्रदेश सचिव
अम्बेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया
राजस्थान ।

Letter from Principal

Dear Families,
I am delighted you have chosen to partner with St. Theresa Catholic School. For the last sixty years our parish school has provided an outstanding education in faith formation and academics. We are a community built on service to others. With education as the mission of our parish, the strongest assets within our growing community remain the children we serve. Evident by the achievements of our outstanding alumni who go on to become leaders in business, medicine, education, law and ministry, we continue to extend our hands.  We are all part of this St. Theresa family working together to produce optimistic, independent, compassionate, life-long learners and leaders in our faith.
I pray in thanks each day for the energetic and talented employees of St. Theresa. Our wonderful staff members embody the spirit of St. Theresa in the smallest daily sacrifice and by putting in the extra effort it takes to get the job done so our children have a better experience. Our teachers support the partnership between parents as primary educators. They enliven each child’s natural curiosity with enriching lessons and sensory experiences. With seamless integration of technology our students are prepared for twenty-first century communication. And most importantly, faith integration is ongoing as our teachers lead by example guiding students toward developing strong moral compasses.
Finally, to you, the parents; thank you for your generosity in time, talents and resources. The volunteer hours you spend in the classroom, the donations of supplies and food preparation, and charitable gifts you make both to the school and to the community at-large do not go unnoticed. I speak for the entire St. Theresa staff in saying we would not accomplish what we do without your help. Thank you for entrusting us with the gifts your children bring each day – for entrusting us to mold and sculpt their minds and enrich their souls in the image of Christ. I am humbled.
With Prayers,

A thank you letter from a parent

Dear Principal, Teachers, Study Group Members, Cooks and Cleaners
I would like to express my appreciation for the love, support, guidance, assistance and much more that you have done for my daughter. I am hoping that God will give you much more patience for our children.
I am aware it’s not easy for you but I feel I need to share this with you. You are doing much more than you should and assigned to do. I highly appreciate that and I am grateful for everything. It’s sad how much our children give you difficult time while you are helping them to be better people and leaders.
I wish they had the understanding of “Leap is giving the best.” The question is; are we appreciating the effort as parents and learners of the school? This is a wonderful gift from God; you are a gift from God.
Our children have a second trusted home “LEAP” and that’s why I feel I must inform you that “you are appreciated and the work you do and the support you give the learners” they may not see that now, but tomorrow (in future) they will. Even if they are playful in time they will cry for the time they wasted, and you; keep up the good work.
I am really appreciating you all and wish God to give you much more strength and courage to do what you’re destined to do.
You are blessed as teachers with a talent that no one can ever take from you. I would call it a calling. You are really called teachers not because you want to make money but to make a difference in our children. I am sorry; I feel at this moment it’s something I need to do and something that you need to be told.
Thank you to the cooks too for making the food for our children. Thank you to the funders of the school for making a difference in our children’s lives by giving them education (free).

Yours truly

An Open Letter to School Administrators

First of all, if you are reading this, thank you. Any time I am able to have someone read my work and allow me to share my thoughts with them I am highly appreciative.  I honestly pour my heart and soul into my writing (which often leads to grammatical and spelling errors) as it is important for me to always wear my heart on my sleeve.  If you are an educational administrator and you are aspiring to be a GREAT educational administrator, I just wanted to share a few of the things that I have found in the last few months of my career.
Leadership is action, not position.
— Donald H. McGannon
Being a school administrator can be a challenging job.  Although I find it very fulfilling, it definitely has its days that are tougher than others.  You surely experienced the same thing as a teacher.  When you are working to build an environment to create the leaders of the future, do not expect it to be a smooth ride the entire time.  In the last few months though, I have found that the support I have received through Twitter and other social networking sites, including this blog, have inspired me to learn and share with so many other great educators.
No problem can be solved by the same consciousness that created it. We need to see the world anew.
-Albert Einstein
Take for example, Chris Lehmann from the Science and Leadership Academy in Philadelphia.  If you ever wanted to see someone who is full of knowledge, cares about kids, and is motivational, watch one of Chris’ speeches.  Although I have never met Chris in person (none of the people I am going to talk about have I ever met in person although I hope to change that soon) through following him on Twitter and on his blog, he has taught me so much about what is important in education and how to move forward towards these goals.
Great necessities call forth great leaders.
— Abigail Adams
Or Eric Sheninger, Principal at New Milford High School in New Jersey.  Here is a principal that was a proponent of social media in schools, and now he uses it along with his students in his school to further learning and share successful practices.  He is not only brilliant, he is supportive of all those that he has come in contact with.  If you want to move your staff and students forward, there are several posts (herehere, and here) that Eric has shared with his school and his Personal Learning Network.
If your actions inspire others to dream more, learn more, do more and become more, you are a leader.
— John Quincy Adams
Or take Patrick Larkin, Principal at Burlington High School in Massachusetts.  He works tirelessly at promoting his school to move forward and share his experiences through his blog.  In fact, he recommends that ALL principals should have a blog and I would agree with him.
If we always do what we’ve always done, we will get what we’ve always got.
-Adam Urbanski
Sadly, I guarantee that I have left out several amazing administrators that I have connected with over this past six months.  If you are on Twitter, here is a list that Eric put together of other educational administrators that I know would definitely be willing to share their learning with you: Educational Administrators on Twitter
The price of greatness is responsibility.
— Winston Churchill
Do not for a second think that I am saying that you must connect with these other educators around the world to be great, but it definitely does help.  Fact of the matter is that, as a principal you may not yourself aspire to greatness.  For many, being a principal is just a job. That is fair as well.  As a leader though, it is your responsibility to make sure that you give the people the opportunity around you to be great.  That is ultimately how you will be judged.  It is not how well you can speak, or the knowledge that you bring to your school, but it is how you empower those around you to do amazing things.
A good leader inspires others with confidence; a great leader inspires them with confidence in themselves.
– (Unknown)
As a principal, I expect my students and staff to posses the qualities of a lifelong learner and by furthering my own knowledge will I model this.  You could definitely further your knowledge through a university course, or reading a book by a great business leader, but I am finding that I am learning more from others that are in similar positions as myself.  These are not great principals of yesteryear, but these are educational leaders of today.  Through them I see unbelievable innovations everyday.
To lead people, walk beside them.
— Lao-tsu
Don’t know where to begin? Try this list of school administrator blogs that can help you.
It is today we must create the world of the future.
-Eleanor Roosevelt
As a true leader, I am assuming that you already know that administrators are not the only leaders in your school.  My school is full of  them and so is yours.  In fact, many of the leaders in your school have maybe already shared resources with me in my pursuit to help my own staff.  My kindergarten teachers asked me how they could use more technology effectively in the classroom at the end of the school year.  I asked this same question through social networks and found these resources immediately. You could do a google search, look through resources, assume which ones work.  You could also ignore the question and say “I don’t know”.  It is okay to say you don’t know.  In my own career, I would rather say, “I don’t know but I will see what I can do to help you”.  Although, similar to when you start anything new, there needs to be time spent connecting with others. As my own connections have progressed though, I actually end up saving time as I have an entire community helping my school to get better.  This way gives the opportunity for everyone to become leaders.
The function of leadership is to produce more leaders, not more followers.
— Ralph Nader
There is no shame in being the quiet leader.  I believe that relationships you build with school community are the MOST IMPORTANT indicators of whether you will be successful or not.  Knowledge is secondary to those connections. I am also by no means saying that I have achieved the level as a principal that I would like to; I definitely have so much to learn in my career. But you have accepted your role as an educational administrator and as a person who cares about the future of all children, you need to do everything in your power to serve those you work with and lead them to unleash their greatness.  Isn’t that why we are in this position in the first place?  Use the collaborative nature of social networks to improve your learning along with the opportunities for staff.
The task of leadership is not to put greatness into people but to elicit it, for the greatness is there already.
— John Buchan
Hopefully I have given you enough tools to get you started, but if you need more, don’t hesitate to ask.  There has been no better time to learn from one another then there is now; take advantage.
A leader is one who knows the way, goes the way and shows the way.
— John C. Maxwell
This is not about technology. This is about connecting and sharing with others and yes, technology can be a fantastic medium for this. It is still ultimately about the relationships you create. Remember that there is a difference between an educational administrator and an educational leader. How do you want to be remembered?

Thank-You Letter

Thank-You Letter 1.1----STAFF MENTOR----------Elementary or Secondary--(Date)(Name)(Address)
Dear (Name):
Thank you for serving as a mentor to (Name) this year. Sharing your ideas and expertise about teaching has made this a rewarding and successful experience for (Name). Your understanding of learning theories, familiarity with school policies and procedures, teaching excellence, and interpersonal skills all contributed to a successful year. Your investment in the mentoring process affects the teaching profession as a whole as well as student learning.
Thank you for your contributions to the mentoring program.
Sincerely,Principal
Thank-You Letter 1.2 ---------STAFF TEAM MEMBER --------Elementary or Secondary
(Date) (Name) (Address)
 Dear (Name):
Thank you for your willingness to serve on the Teacher Interview Team. I really enjoyed the opportunity to work with you in the process of hiring new staff members. The task is critical, but with many hands, the work involved in screening applications, conducting phone interviews, and identifying the top candidates was a success. The new process we’ve used during our past two screenings has really assisted us in identifying those who best match the philosophy of (Name of School) School.
I hope that you found the process enjoyable. As always, change and revision help to improve our work. Please take a few minutes to reflect on the process and provide me with any ideas you might have for improving it. Again, thank you for your contributions.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.3 --STAFF MEMBER LEAVING SCHOOL--- Elementary or Secondary
(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for your service to (Name of School) School. During your tenure here, you worked hard toward making (Name of School) School’s mission come true. Your ability to work with students is exceptional. The “extras” you provided to assist student learning helped the entire team. We will all miss your humor too.
Please help us by completing the exit evaluation survey that you will receive from the personnel office. Your comments about your experiences at (Name of School) School will help us be the best we can be!
 I wish you the best in your new job. You will be missed by all of us.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.4 --STAFF COMMITTEE MEMBER ----Elementary or Secondary
(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for agreeing to serve on the (Name of Committee) Committee. This is an important assignment, and your work on the committee will affect the entire school district. The specific tasks for the committee are to
• • •
We will need to have the committee report by (date). We look forward to hearing the results of your work.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.5 --STUDENT ----Elementary or Secondary --(Date) (Name) (Address)
 Dear (Student Name):
Thank you for your help with the (Activity) at (Name of School) School last week. You did a great job of organizing (Activity) and working with the younger students.
Although you volunteered for this assignment to meet your (Service Hours/ Citizenship) requirement, you certainly displayed excellent interpersonal skills and the flexibility and knowledge to work with this age group. We would welcome your assistance with future activities.
On behalf of everyone who participated in (Activity), thanks!
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.6 ----PARENT(S), FIELD TRIP---- Elementary ----(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for accompanying the (Class) class on their field trip to (Place). The students have made many comments about what a fantastic time they had. They particularly appreciated your great sense of humor.
Field trips are a wonderful educational experience for students. These events create lasting memories for the students. They provide hands-on learning opportunities that cannot be duplicated in the classroom. Without your help, this student trip would not have been possible.
So on behalf of the students, thanks so much.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.7 ----PARENT(S), FUNDRAISING--- Elementary ---(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for your assistance with our recent (Event) fundraising event. Your efforts resulted in profits of (Dollar Amount) for (Name of School) that exceeded our goals for the event. These funds will be used to (Fund’s Uses).
Successful fundraising activities take time and organization. The success of the (Event) is clear evidence of your outstanding work.
As you know, the students at (Name of School) realize the benefits of the fundraising activities. On their behalf, thank you for your work.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.8 -----PARENT(S), PTO/PTA ----Elementary---- (Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for your service as PTO/PTA (Position) during the (Year) school year. This work is very important to the experiences our children have at (Name of School) School. Your contributions provide the “something extra special” for the students.
Your work this year has resulted in some real successes. These include (Description of Successes). The number of parents who were involved in activities this year is truly remarkable.
The true beneficiaries of your efforts are the students at (Name of School) School.
Again, thank you for your efforts. Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.9----GUEST SPEAKER(S) ----(1) Elementary ---(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for giving your valuable time and sharing an important message with our students. It was an excellent presentation.
I also appreciate the involvement of (Names) and their important messages to the students.
Their participation provided great role models for the students. Please extend our thanks to (Names). There were many positive comments about the quality of your presentations.
 Thanks for helping make (Description) Week a success. Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.10 ---GUEST SPEAKER(S) ---(2) Elementary or Secondary -(Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Thank you for the program you provided for our students. Although we strive to provide the best instructional experiences we can for our students, we cannot replicate the world of work experiences you presented to the students. I am sure they will remember your presentation and that it will be a source of inspiration as they pursue their occupational interests. Your contributions are greatly appreciated!
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.11 ---CONFERENCE SPEAKER ---Elementary or Secondary -(Date) (Name) (Address) Dear (Name):
 I really enjoyed your presentation at the (Name of Conference) Conference. I was particularly interested in what you said about (Description). Your topic is particularly timely given the national emphasis on standards and assessments. I am sorry that all of our teachers were not able to attend the presentation.
Thank you for sharing your work in this area. It is really of critical importance to educators.
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.12---- DONATION, GENERAL ---Elementary or Secondary (Date) (Name) (Address) Dear (Name):
On behalf of the students at (Name of School) School, thank you for your generous contribution. The students at (Name of School) School will benefit from your contribution both now and in the future. In times of limited resources, contributions such as yours make an incredible difference in what’s available to our students.
As a continuing reminder of your generosity, your name will be added to our Donor Honor Wall in the (Location) hall. We would like to have a special ceremony to recognize your contribution, and we will contact you soon to schedule this event. Your gift will truly be remembered at (Name of School) School!
Sincerely, Principal
Thank-You Letter 1.13 DONATION, IN KIND Elementary or Secondary (Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
On behalf of the students of (Name of School) School, I want to thank you for the donation of (Description) to our (Description) program.
Thank you for the support that (Name of Business) has shown (Name of School) School. The partnership with (Name of Business) has been a great association for the students and faculty. We value your assistance and association with our school.
Sincerely, Principal
DONATION, MONEY ---Elementary or Secondary--- (Date) (Name) (Address)
Dear (Name):
Please accept this as a receipt for your generous donation to the (Description). Your donation to the (Name of School) during (Year) totaled (Dollar Amount).
We appreciate your recognition of the needs of the students and the school. Without your support, we would be limited in the opportunities we are able to provide.
Thank you for your generous support.

Sincerely, Principal