Tuesday, March 24, 2015

Complaint against Shri Jai Singh,

To,                                                                                                                               Date:              
The Deputy Commissioner (West)
Revenue Department, GNCT of Delhi
Old School Building, Rampura, New Delhi – 110 035

Subject:           Complaint against Shri Jai Singh, TGT, (SST), Govt. Co-ed. Sr. Sec. School, Rajapur Khurd, (ID-1618192), Delhi on the act of willful harassment and negligence his duties 

Regarding:      SECC-2011 – Payment to Enumerator (Raghubir Singh)

Sir,

My name is Raghubir Singh, resident of B-618, JawalaPuri, Sunder Vihar, New Delhi-110087 Contact No.: 9212200559.  I had been completed work as Enumerator (EB No. 116,117,118,119) under Socio Economic and Caste Census, 2011 (Enumerator I Card Copy enclosed). I have submitted the following complete details to Mr. Jai Singh, TGT, (SST), who is deputed as Supervisor (Ward No.121) posted for this purpose in SECC, with a Xerox copy of bank passbook
My Name: RAGHUBIR SINGH
A/c No: SB01016918
IFSC Code :CORP0000476
Branch: PASCHIM VIHAR, DELHI.

As till date the payment for my work has not been credited in my bank account, I contacted one Mr. Gujral, Incharge of SECC for West District, who is a Senior Officer to Shri Jai Singh, TGT for my payment. In reply, Mr. Gujral gave me a copy of a detail (copy enclosed herewith), which reveals that the payment for my work prepared and sent to bank for clearance into an account no.085100101001252, in the name of one Ms. Meenakshi at Corporation Bank, Rajouri Garden Branch, New Delhi, instead of my name and my account no.SB01016918 at Corporation Bank, Paschim Vihar Branch, New Delhi.  In view of above i.e. due to mismatch of bank account numbers, the clearance through ECS could not be made / returned by the bank. 

So, yesterday, 23.03.2015, I contacted Mr. Jai Singh, through my mobile number to his mobile number-9213327035 nearly at the time of 07-15 pm (night) and politely requesting him to meet personally to solve the above problem / mistake done by him (Mr. Jai Singh).  In reply, through mobile conversation, he (Mr. Jai Singh), denied to give an appointment to meet him and further says that “I have lot of work pressure and therefore I will not & I cannot make any corrections in the aforesaid issue and do whatever you want” and, thereafter, he disconnected the phone conversation

After receiving such type of reply from him (Mr. Jai Singh), I could not understand that “even I gave my complete bank details to him very correctly, why he (Mr. Jai Singh) prepared the details for making the payment for my work to another person’s name instead of my name and my bank account”.   AND further I could not understand that “even after his deliberate willful mistake in the above issue, why he does not like to correct the same”.

In view of all above, I am not able to get my payment till date since November, 2014 and, therefore, the above-said act as intentionally done by Mr. Jai Singh is reflect as disobedience / willful negligence to his duties.     Hence, I request you to kindly take necessary action against Mr. Jai Singh, TGT, Govt, Co-ed. Sr. Sec. School, Rajapur Khurd, (ID-1618192), Delhi under the relevant rules and also direct him to prepare the required correct payment to me for my work, urgently.       A reply on the above issue is solicited.
Yours faithfully,



 (Raghubir Singh )
B-618, JawalaPuri, Sunder Vihar,
New Delhi-110087.

Contact No.: 9212200559

Saturday, March 21, 2015

काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि अनेक विकार होते हैं। काम वासना इनमें सबसे प्रबल है।

जो चीज हमें संसार में बांधे रखती है और हमारे बंधन का कारण बनती है, उसे माया कहते हैं।
केवल धन ही माया नहीं बल्कि वो सभी चीजें
जिनके प्रति हम आसक्ति होकर काम-क्रोध आदि विकारों में रहते हैं माया ही है।
प्रश्न उठा है कि क्या माया खराब है...???
असल में माया खराब नहीं वो तो सुविधा के लिए बनी है लेकिन उसमें हमारी आसक्ति खराब है।
माया तो उपयोग के लिए है, लेकिन हम उपयोग से हटकर जब उपभोग करने लगते हैं, तब फंस जाते हैं।
माया को छोड़ने की जरूरत नहीं बल्कि उसके प्रति अपनी आसक्ति को छोड़ दें।
मान लो आपने माया छोड़ दी लेकिन आसक्ति बनी रही तो बाद में माया के छोड़ने का पछतावा होगा।
असल में आसक्ति को हम छोड़ना नहीं चाहते और बहाना करते हैं कि माया छूटती नहीं।
जैसे एक आदमी सुबह देर तक सोता रहा उससे पूछा क्यों भाई देर से क्यों उठे, वो बोला मेरा कंबल मुझे छोड़ नहीं रहा था।
क्या कंबल हमें नहीं छोड़ता या हम कंबल को नहीं छोड़ते हैं...???
ऐसे ही माया को हम छोड़ना नहीं चाहते और कहते हैं माया ने मुझे फंसाया है।
हमारे भीतर काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि अनेक विकार होते हैं।
काम वासना इनमें सबसे प्रबल है।
आंख दृश्य देखती है लेकिन आंखों के पीछे चित्त में काम वास करता है।
जितनी प्रबल वासना होगी वो उतनी शीघ्रता से
इंद्रियों के द्वारा बाहर निकलेगी।
ये तो जितना भोगेंगे उतना बढ़ती जाएगी।
जैसे हवन कुंड में आग जली हो और आप उसमें घी डाल दे तो आग और बढ़ जाएगी।
बार-बार भोग लेने से वासना का नाश नहीं होता।
फिर आप में और एक जानवर में क्या अंतर है।
खाना, भोगना और सोना जानवर भी करता है आप भी करते हैं।
केवल इतना ही जीवन नहीं है, जानवर की तरह मत जीयो।
ये शरीर तो मल,मूत्र,पसीना,खून से भरा हुआ मांस का लोथड़ा ही है।
जब आप सुबह सोकर उठते हैं तो देखना शरीर के हर द्वार से गंदगी ही बाहर निकल रही है।
इस गंदगी से भरे शरीर के प्रति आसक्ति क्यों रखते हो...???
बल्कि इस शरीर को धारण करने वाली सत्ता को देखो, उससे प्रेम करो।
जो तुम्हारे और सामने वाले में एक ही है।
शरीर में भेद है लेकिन शरीरों को चलाने वाली चेतना में भेद नहीं होता है।
शरीर का क्या है, ये तो बढ़ती उम्र के साथ ढल ही रहा है, बिखर रहा है, बीमार, कमजोर और बुढ़ा हो रहा है फिर एक दिन जर्जर हो जाएगा लेकिन ये वासना कभी बुढ़ी तथा जर्जर नहीं होगी।
ये वासना हम पर हावी होकर हमारी शक्ति का नाश करती है जिससे हमारा मन, बुद्धि और विवेक भ्रमित हो जाता है, इसलिए इस पर विजय पा लो।
हरपल बदलते शरीर पर मोहित क्यों होते हो, बल्कि जो कभी नहीं बदलता उस आत्मा को प्रेम करो।
प्रभु से प्रेम करो....!!

Friday, March 13, 2015

निस्संतान योग


यह जान लें कि जिस प्रकार विवाह बिना जीवन
अधूरा है उसी प्रकार विवाह के उपरान्त सन्तान न
होना एक अभिशाप है। समाज में रहते हुए वंश वृद्धि न
हो तो लोग टोकने लगते हैं और हेय दृष्टि से देखते हैं।
सन्तान वंश वृद्धि के लिए आवश्यक है। सन्तान
की उत्पत्ति न हो या बहुत विलम्ब से हो तो वैवाहिक
जीवन नीरस हो जाता है। ईश्वर की कृपा व ग्रहों के
आशीर्वाद के बिना सन्तान का होना सम्भव नहीं है।
वैसे तो सन्तानहीनता के कई कारण हैं, लेकिन
दो कारण प्रमुख हैं-
1. या तो बच्चे उत्पन्न होते ही नहीं है और होते हैं
तो माता व पिता के पूर्व जन्मों के बुरे कार्यों के
कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
2. निस्सन्तान योग।
निस्सन्तान योग के विचार के लिए निम्न तथ्यों पर
ध्यान देना चाहिए-
1. लग्नेश निर्बल नहीं होना चाहिए।
2. पंचमेश निर्बल नहीं होना चाहिए।
3. सप्तमेश निर्बल नहीं होना चाहिए।
4. यदि कोई ग्रह निर्बल नहीं है तो उन पर पाप प्रभाव
है या पापग्रहों की दृष्टि है तो जिस कारण सन्तान
सम्बन्धी परेशानी हो सकती है।
यदि चारों ग्रह निर्बल या पाप पीड़ित हैं, अस्त हैं,
नीच राशि में हैं, पापकर्त्तरी योग में हैं तो निस्सन्तान
योग बनता है।
महर्षि पाराशर के अनुसार पूर्व जन्मों के बुरे कार्यों के
प्रभाव से तथा सर्पों के शाप से
भी सन्तानहीनता होती है। ज्योतिष में राहु सर्प
का द्योतक है। सन्तान सम्बन्धी भावों तथा ग्रहों पर
राहु की स्थिति हो, युति हो या दृष्टि हो तो सर्प
शाप के कारण सन्तानहीनता है। इसके लिए ये योग बनते
हैं-
1. राहु पंचम भाव में हो और मंगल दृष्टि उस पर
हो तो सन्तान को क्षति पहुंचती है।
2. यदि पंचमेश, पंचम भाव में राहु शनि के साथ हो और
उन पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़े या चन्द्र की युति हो।
पंचमेश निर्बल है, लग्नेश और मंगल एक साथ कहीं बैठे
हों तथा सन्तान कारक गुरु राहु के साथ
हो तो सर्पशाप के कारण सन्तान
को क्षति पहुंचती है।
इसके अलावा माता या पिता, मामा का शाप,
बुरी स्त्रियों का शाप, देवी व देवताओं का शाप, दुष्ट
आत्माओं का शाप भी होते हैं। ये शाप
ही सन्तानहीनता के प्रमुख कारण हैं।
उपाय व पूजा पाठ द्वारा कुछ सीमा तक बचाव करके
सन्तान पायी जा सकती है।
प्रसिद्ध फलित ज्योतिष की पुस्तक फलदीपिका के
अनुसार इन योगों में निस्सन्तान होना पड़ता है-
1. यदि लग्न से चन्द्र और गुरु से पंचम भाव में पापग्रह
स्थिति हो या उनकी दृष्टि हो तथा शुभ ग्रह
की दृष्टि न हो।
2. पंचम भाव पापकर्त्तरी योग में हो।
3. जब लग्न से, चन्द्रमा से और सन्तान कारक गुरु से
पंचमेश त्रिाक भाव अर्थात् 6, 8, या 12वें हो।
4. यदि लग्न में पापग्रह हों, लग्नेश पंचम भाव में हो,
पंचमेश तृतीय भाव में हो और चन्द्रमा चतुर्थ भाव में
हो तो ऐसे जातक के कोई सन्तान नहीं होती है।
5. यदि चन्द्र पंचम भाव में विषम राशि में हो या विषम
राशि के नवांश में हो और उस पर सूर्य
की दृष्टि हो तो भी ऐसे व्यक्ति का कोई
बच्चा नहीं होगा और वह निस्सन्तान होने के कारण
दुःखी रहेगा।
वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक शुष्क
राशि समझी जाती है। यदि पंचम भाव या पंचमेश इनमें
चला जाए तो बच्चों की उत्पत्ति के लिए बाधक
होती है।
महिलाओं के क्षेत्र स्फुट और पुरुषों के बीज स्फुट
की राशि यदि क्रमशः विषम और सम हो तो वह उस
स्त्री और पुरुष के लिए बच्चा उत्पन्न कर पाने
की अयोग्यता का संकेत करते है
सन्तानहीनता से बचाव
इसके लिए योग्य ज्योतिषी से सलाह लें और उपाय करें।
चिकित्सक से सलाह लेकर परीक्षण करें और सब ठीक है
तो उपाय अवश्य करें।
निम्नलिखित उपायों से भी सन्तानहीनता दूर
होती है-
1. हरिवंश पुराण का पाठ विधिविधान से करें।
2. सन्तान गोपाल का पाठ नित्य करें।
3. पीपल की सेवा करें।
4. शिवलिंग पर नंगे पैर मंदिर जाकर बिना नागा जल
चढ़ाएं और पुत्र या सन्तान प्राप्ति का संकल्प अवश्य
करें।
5. सन्तान गोपाल मन्त्र का नित्य पाठ करें।
सवा लाख मन्त्र अवश्य करें।
6. चांदी के ठोस हाथी से
अपनी गलतियों की माफी मांगें।
7. कुण्डली में जो शाप है उसका उपाय अवश्य करें।
8. तो भी सन्तान नहीं होती है दत्तक पुत्र के योग
देखकर सन्तान गोद ले लें अथवा योग्य चिकित्सक की सलाह ले

Sunday, March 8, 2015

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||
चोपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा | अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी| कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा | कानन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे| काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन | तेज प्रताप महा जग बंदन||
विद्यावान गुनी अति चातुर | राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया | राम लखन सीता मन बसिया ||
सुषम रूप धरी सियहि दिखावा | बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे | रामचंद्र के काज संवारे ||
लाय संजीवन लखन जियाये | श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई | तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावे | अस कही श्रीपति कंड लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा| नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहा ते| कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा | राम मिलाय रज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र विभेक्षण माना | लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू | लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||
प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं| जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते | सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे | होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना | तुम रक्षक काहू को डरना ||
आपण तेज सम्हारो आपे | तीनों लोक हांक ते काँपे ||
भुत पिसाच निकट नहिं आवो | महावीर जब नाम सुनावे ||
नासौ रोग हरे सब पीरा | जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे | मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||
सब पर राम तपस्वी राजा | तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे | सोई अमित जीवन फल पावे ||
चारों जुग प्रताप तुम्हारा | है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे | असुर निकंदन राम दुलारे ||
अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा | सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावे | जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई | जहा जनम हरी भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई | हनुमत सेई सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा | जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||
जय जय जय हनुमान गोसाई | कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाट कर कोई | छूटही बंदी महा सुख होई ||
जो यहे पड़े हनुमान चालीसा | होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा | कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||
दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप ||

Friday, March 6, 2015

प्रेतबाधा के सूचक ज्योतिषीय योग इस प्रकार हैं:-


1. नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।
2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।
3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।
4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।
5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।
6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।
8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय।
9. चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।
10. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।
11. लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।
12. मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्त हो।
13. पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो।
14. शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो।
15. जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।
16. अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो।
17. राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।
18. लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।
19. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो।
20. द्वितीय में राहु द्वादश मं शनि षष्ठ मं चंद्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।
21. चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो।
22. चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।
23. नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।
24. जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाहय परिस्थितियों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप होता है उनसे विशेष रूप से बचें। जातक को प्रेतबाधा से मुक्त रखने में अधोलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं:-
25. शारीरिक सुचिता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखें।
26. नित्य हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण का पाठ करें।
27. मंगलवार का व्रत रखें तथा सुन्दरकांड का पाठ करें।
28. पुखराज रत्न से प्रेतात्माएं दूर भागती हैं, अतः पुखराज रत्न धारण करें।
29. घर में नित्य शंख बजाएं।
30. नित्य गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें।

Wednesday, March 4, 2015

शकुन शास्त्र-ईश्वरीय संकेत


१:- घर के परिसर में बिल्ली या बिलाव का रोना या आपस में झगड़ा करना विपत्ति या घर में क्लेश का सूचक है.
२:- यदि घर के मुख्य द्वार से सांप का प्रवेश होता है तो, यह गृहस्वामी या गृहस्वामिनी के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता है.
३:-यदि घर में कोई चोट खाया या घायल पक्षी या उसका कोई काटा हुआ अंग आँगन में गिरता है तो, समझ लीजिए कि महासंकट आने वाला है.
४:- घर में यदि कुतिया प्रसव करती है तो यह गृहस्वामी के लिए अच्छा संकेत नहीं है, इसके कारण शत्रु की वृद्धि होती है तथा अपने ही परिवार में मतभेद होने लगते है.
५:- यदि घर में कौवा, गिद्ध, चील या कबूतर नित्य बैठते है और छह मास तक लगातार निवास बनाए हुए है तो गृहस्वामी पर नाना प्रकार की विपत्ति आने का सूचक होता है.
६:- यदि घर में काले रंग के चूहे बहुत अधिक तादाद में दिन और रात भर घूमते रहते हो तो, समझ लीजिए कि किसी रोग या शत्रु का आक्रमण होने वाला है.
७:- यदि घर की छत पर, दीवार पर या घर के किसी भी कोने में लाल रंग की चींटिया घुमती या रेंगती हुई दिखाई दे, तो समझ लीजिए कि संपत्ति का क्षय होता है.या संपत्ति का कोई नुक्सान हो जाता है. और यदि पंख वाली चींटियां हो तो
घर में बिनाकिसी कारण के क्लेश की स्थिति उत्पन्न होने लगती है.
८:- यदि पालतू गाय अपना दूध पीती हो या अत्यधिक सिर हिलाती हो, तो घर के गृहस्वामी के ऊपर कर्ज बढ़ता है और भाग्य खराब होने लगता है.
९:- यदि किसी खुशी के कार्य पर घर में आग लग जाय तो धन हानि की संभावना बन जाति है।
१०:- यदि घर में बने मंदिर की कोई मूर्ति या चित्र अपने आप खंडित या जल जाए, या जमीन पर हाथ से छूट कर टूट जाए तो, यह संकेत पूरे परिवार के लिए शुभ नहीं होता तथा इसके कारण समाज में मां हानि और कलंक लगता है. घर में विवाह आदि शुभ कार्योंमें अनावश्यक बाधाओं का सामना करना पडता है.
११:- यदि घर में रसोई का प्लेटफार्म का चटकना या टूटना, चाकले का टूटना या तड़क जाना दरिद्रता की निशानी होती है.
१२:- यदि घर में दूध बार बार जमीन पर गिरता हो, किसी भी कारण से तो घर में क्लेशऔर विवाद की स्थिति बनती है.
१३:- यदि सुबह के समय या शाम के समय कौवा मांस या हड्डी लाकर गिराता है तो, समझ लीजिए कि अमंगल होने वाला है और बिमारी, चोट आदि पर धन खर्च होगा.
१४:- यदि कोई भी पक्षी घर में किसी भी समय कोई लोहे का टुकड़ा गिराता है तो, यह अशुभ संकेत होता है जिसके कारण अचानक छापा या कारावास होने की पूरी पूरी संभावनाबनने लगती है ।
१५:- यदि जिस दिन नए घर में प्रवेश करना हो तो, उसी दिन सूर्योदय के समय कोई भी पशु रोता है तो उस दिन गृह प्रवेश टाल दें यह संकेत शुभ नहीं होता है ।