Wednesday, August 28, 2013

Inquiry letter seeking for admission in primary section

The Headmistress,
Gadegawnlia Convent School,
Delhi

Subject: Inquiry letter seeking for admission in primary section 

Dear Madam,

With due respect, I want to state that our daughter has just completed her Kindergarten schooling from Vishal Kids, Delhi and we are writing this application to you as we are looking for a seat in primary section of your prestigious school. We are highly impressed with the excellent result of students of your school in the recent board examination. Also the teaching methodologies adopted by your school, which is the backbone of such good result, are highly appreciated by well known educationists of the state. Thus we believe that your school will be the right platform for our daughter for building a bright career.

Our daughter, Lakshita, who completed 6 years last February, is a very obedient student with quick grasping power. She is very active and a smart girl. Besides doing well in her academia she has always been participative in the extracurricular activities and able to get appreciation from her teacher. We believe by studying at your school she will not only get good education but also be able to develop her all round personality. By doing so, she will contribute to the overall name and fame of your school through her good results.

I am post graduate in English and currently involved in part time teaching job for graduate level students. My husband is a post graduate and is working with a multinational company. We take very good care of our child in terms of teaching her good manners and discipline at home. I believe you will notice the same when we meet you in person.

We will be grateful to you if you could offer an opportunity to our daughter to prove her abilities and find a seat in your school. 

Looking for a positive response from your side,


Sincerely yours,

request for admission

To
The principle,
xxxxxxxxxx,


sub:- request for admission in 1st standard
sir,
my name is xxxxxxxxxxxxxxxx i live at xxxxxxxxxxx about xxxxxkms from your school. this is to inform you that since yours being one among the best schools in the city known for its name and fame i would like to join my son xxxxxxxxxxxxxx aged xx in your school. your school has a good reputation in the city and in my opinion educating my son in such a school as your would lead him to a bright future. i being the father of xxxxxxxxxxxx consider that your school caters my sons requirements for a rightful education. i kindly request you to consider my request a admit him in to your renowned and esteemed school.

thanking you,
yours sincerely,

Monday, August 26, 2013

मंत्र

मंत्र :
  • ऊं सर्वलोक वश्यंकराय कुरु-कुरु स्वाहा |
  • ऊं नमो भगवते ज्वालाग्नी श्य्यादिश्ठा विनय स्वाहा |
  • ऊं नमो भास्कराय जगदात्मने (अमुकं) वशमानय कार्य कुरु-कुरु फट स्वाहा |
  • ऊं नमो भगवती मातंगेश्वरी सर्व मुख रंजनी सर्वेषां महामाये मातंगे कुमरिके नन्द नन्द जिह्वे सर्व लोकं वश्य करि स्वाहा |
विधि : शुभ दिन व शुभ लग्न में उत्तर कि ओर मुंह करके, सूर्योदय के बाद शुद्ध होकर मूंगे की माला से जाप प्रारंभ करें| १२५००  जाप कर मंत्र सिद्ध कर ले|

प्रयोग : उपरोक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मंत्र को सिद्ध कर, फिर सर्वजन वशीकरण तंत्र की किसी भी वास्तु को प्रयोग में लेने से पहले २१ बार अभिमंत्रित करे फिर प्रयोग में लायें|

सर्वजन वशीकरण तिलक :

  1. बिल्व पत्र तथा बिजौरा को बकरी के दूध में घिस कर तिलक करें तो वशीकरण होता है |
  2. ग्वारपाठा के मूल में भांग के बीज पीसकर तिलक करें |
  3. अपामार्ग  की मूल कपिला गाय या बकरी के दूध में पीस कर तिलक करें
  4. सिन्दूर तथा सफ़ेद बच पान के रस में पीस कर तिलक करें
  5. काला भांगरा, श्वेत लाजवंती व सहदेवी मूल इन सबको सम भाग पीसकर तिलक करें 
  6. गूलर की मूल घिसकर तिलक करे
  7. शिलाजीत, तम्बाखू, केसर व गोरोचन इन सबको संभाग पीस कर तिलक करें
  8. मुस्ता की मूल को चन्दन के साथ घिसकर तिलक करें
  9. पुष्य नक्षत्र में इन्द्रायण की मूल, पीपर, सौंठ और काली मिर्च इन सबको सम भाग गोदुग्ध में पीसकर गोली बना लेंफिर चन्दन में घिसकर तिलक करें
  10. मैनसिल, गोरोचन व मुस्ता की मूल पानी में घिसकर तिलक करें, जिसका नाम लेकर उसके सामने जाए
  11. रजस्वला स्त्री के रक्त में गोरोचन मिलाकर तिलक करें
  12. काक विष्ठा और गोदंत दोनों को पीसकर तिलक करें
  13. अपराजिता के मूल को पीसकर रुई की बत्ती में लपेट कर काजल पारकर तिलक करे
  14. रविवारी अमावस्या को घुग्घी का कलेजा, मैनसिल, अश्वगंधा, गोरोचन, केसर, चमगादड़ की विष्ठा, भिँसे का सींघ और कूठ इन सबको संभाग बारिक पीसकर गो-मूत्र में गोली बनाये और जरूरत पड़ने पर पानी में घिसकर तिलक करें फिर जहाँ जाएँ देखने वाले वश में होते हैं
  15. तगर, कूठ, हरिताल और केसर इन सम भाग लेकर उसमे अनामिका उंगली का रक्त में पीसकर तिलक करें
  16. अपामार्ग, भांगरा, लाजवंती और सहदेई इनको समभाग लेकर तिलक करें
  17. मनुष्य के कपाल में धतूरे के बीज रखे फिर शहद और कपूर मिलाकर पीसें फिर तिलक करें
  18. बड के वृक्ष की मूल पानी के साथ घिस कर उसके उपलों की भस्म मिलकर तिलक करें
  19. अपामार्ग के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर तिलक करें
  20. अश्वगंधा, हरताल, सिन्दूर को केले के रस में पीसकर तिलक करें
  21. श्वेतार्क मूल को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में घिसकर तिलक करें
  22. पान, तुलसी के पत्ते कपिला गाय के दूध में पीसकर तिलक करें
  23. गोरोचन व सहदेवी को घिसकर तिलक करे
  24. केसर, सौंठ, कूठ, हरताल, मैनसिल व अनामिका अंगुली का रक्त मिलाकर तिलक करे
  25. श्वेत गुंजा मूल को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस कर तिलक करे 

सर्वजन  वशीकरण मूल :

  1. पुष्य नक्षत्र में पुनर्नवा की मूल लाकर दांयी भुजा में बांधने से सब लोग वशीभूत होते हैं
  2. पुष्य या भरणी नक्षत्र में सुदर्शन की मूल लाकर में बांधें
  3. मुस्ता की मूल को मुंह में रख कर जिसके नाम का उच्चारण किया जाये वो वश में हो

सर्वजन वशीकरण चूर्ण :

  1. गूलर वृक्ष की मूल का चूर्ण जिसे भी पान में खिला दें वही वशीभूत हो जाता है

सर्वजन वशीकरण लेप :

  1. पान व उसकी जड़ का शारीर पर लेप करे तो सर्वजन वशीकरण हो

सर्वजन वशीकरण सुपारी :

  1. एक सुपारी लायें, ग्रहण के समय नाभि तक पानी में खड़ा होकर "पीर मैं नाथ पीर तुं नाथ, जिसको खिलाऊँ, उसको वश करना, फुरो मंत्र इश्वर वाचा", इस मंत्र को सात बार बोलकर वह सुपारी निगल जाएँ, दूसरे दिन सुबह जब वह सुपारी मॉल में निकले, उसको दूध में धोकर रख ले, इस सुपारी का एक टुकड़ा जिसे भी खिलाया जाएगा वो आजीवन वश में रहेगा
सर्वजन वशीकरण पत्र :

  1. भोजपत्र पर गोरोचन, केसर व महावर से जिस किसी का नाम लिख कर रख देंगे वह वश में रहेगा
  2. हस्त नक्षत्र में पलाश का पत्ता हाथ में बाँधने से सर्वजन वश में होते हैं
  3. भोजपत्र पर शत्रु का नाम लिख कर शहद में डुबोकर रखने से वह वशीभूत रहता है

Thursday, August 22, 2013

LAL KITAB KE UPAY

1 यदि किसी अकंलेया दो ग्रहों पर उस के शत्रु की दृष्टि हो तो वह ग्रह अशुभ फल देगा।
2. यदि दो मित्र ग्रहों अपने मित्र ग्रह के भाव में स्थित हो और उस शत्रु को दृष्टि हो तो भी शुभ फल देते हैं।
3. जो ग्रह जिस भाव में उस भाव (पक्का घर) का स्वामी उच्च राशि या नीच राशि का प्रभाव भी समलित होगा जैसे-लग्न में सूर्य की उच्च राशि शनि की नीच राशि और मंगल का पक्का घर है इस प्रकार सब भावों पर विचार करें।
4. दूसरे भाव के ग्रह यदि षष्ठ और दशम भाव के मित्र होते है तो शुभ फाल देते है। वरना अशुभ।
5. यदि सूर्य अष्टम या दशम भाव में स्थित हे कर अशुभ फल दे रहा है तो अपने सीधे दायी हाथ की कलाई पर ताम्बे का कड़ा या ब्रसलेट पहन परन्तु उस समय 3-9-11 भाव में शनि-राहु-शुक्र स्थित न हो।
6. यदि शुक्र सप्तम भाव में होने के कारण सास-बहू में झगड़ा होता हो तो कन्या का चान्दी के आभूषण नहीं पहनने चाहिए।
7. वृहस्पति के पक्के भाव 2-5-9-12 में शत्रु ग्रह स्थित हो तो उन का उपाय अवश्य करे।
8. जन्म कुंडली में मंगल बद हो तो उस का उपाय करे।
9. जो ग्रह अपनी उच्च राशि के भाव में स्थित हो तो उस के पक्के भाव में उसके शत्रु ग्रह हो तो तउस का उपाय करें नहीं तो शुभ फल नहीं मिलेगा।
10. जिस भाव में सूर्य बैठ कर शुक्र को खराब कर रहा हो तो शनि को उस बाव में स्थित करें जिस की दृष्टि सूर्य पर पड़ें।
11. 1-7-8 भावो के ग्रह परस्पर मित्र हो तो शुभ फल शत्रु हो, तो अशुभ फल मिलता है।
12. लाल किताब के अनुसार लग्न को राजा सप्तम भाव को वजीर अष्टम भाव की आँखें एकदश भाव के टागों कहते है।
13. यदि सष्तम भाव में शनि हो तो बने बनाए मकान मिलेंगे परन्तु बुध अष्टम भाव में हो तो मकान बनाने और जायदाद खरीदने बनने में अनेक कठिनाई आती है।
14 यदि बुध लग्न या सप्तम भाव में हो तो मकान बनाना एक स्वप्न होगा।
15. यदि लग्न और अष्टम भाव में आपस में शत्रु हो तो जातक को कई प्रकार के कष्ट आते है।
16. यदि लग्न और अष्टम भाव में आपस में शत्रु हो तो जातक को कई प्रकार के कष्ट आते है।
17. राहु, शनि-केतु के सिवा वर्षफल में एकादश भाव के ग्रह लग्न में आते है तो शुभ फल देते है।
18. केतु जिस भाव में स्थित हो तो उस भाव का फल नष्ट होता है जैसे चतुर्थ भाव में हो तो माता का सुख नहीं मिलता या मृत्यु हो सकती है।
19. वर्ष फल में अष्टम भाव में एकादश भाव के ग्रह आए तो अशुभ फल मिलता है।
20. यदि अष्टम भाव में स्थित मंगल की दृष्टि शुक्र पर हो तो लड़का या लड़की एक से अधिक से प्रेम करती है।
21. मंगल केतु द्वितीय भाव में हो, तो जातक धनवान उच्च अधिकारी होता है। यदि शुभ फल दे रहा हो तो।
22. जब दशम भाव में बुध हो और वर्षफल में चतुर्थ भाव में आए तो कुल परिवार को कष्ट होता है।
23. वर्षफल में दादश भाव का चन्द्र लग्न में आता है ससुराल की धन हानि होती है।
24. दादश भाव का चन्द्र दोबारा भाव में आता है। जातक धनी होता है।
25. जब चन्द्र दादश भाव में बुध या शुक्र अथवा पाप ग्रह 2-6-12 भाव यदि पापी ग्रह बुध सहित दशम भाव में हो तो सम्बन्धित ग्रह प्रत्येक ग्रह के अलग-अलग उपाय से शुभ फल मिलेगा।
सूर्य-
1. सूर्य कभी राशि फल का नहीं होता है। 1-5 भाव के सिवायें सूर्य जिस राशि में बैठा हो उस राशि का मारक ग्रह या उस राशि का स्वामी ग्रह का साथी ग्रह राशि फल का हो जाएगा, ऐसी हालत में उस राशि फल में हो जाने वाले ग्रह के लिए उस के शत्रु ग्रह से बचाने के लिए उपाय करें क्योंकि सूर्य स्वयं तो कभी नीचे नहीं होता बल्कि अपने शत्रु ग्रह को अपने नीचे दबा कर उस के फल को खराब करता है।
2. लग्न और पंचम भाव में बैठा हुआ सूर्य हर मित्र और शत्रु ग्रह को जो उस के सहायता कर दिया करता है ऐसी हालत में राशि फल का प्रश्न ही नहीं या किसी उपाय की आवश्यकता नहीं होगी।
3. षष्ठ एवं सप्तम भाव में स्थित होते राहु को किसी उपाय से शुभ कर ले यदि सप्तम भाव सूर्य और शनि का टकराव हो तो चन्द्र को नष्ट करने से सूर्य की सहायता होगी।
चंद्रमा-
1. चंद्र सदा ही राशि फल का होता है। विषेश कर तृतीय भाव में चंद्र से पूरा नेक मंगल होगा जो जातक संसारिक कठिनाइयों में विजय दिलवाएगा।
2. सप्तम भाव में चंद्र पूरा शुभ प्रभाव देने वाला लक्ष्मी का अवतार होगा।
3. अष्टम भाव में मृत्यु के यमदूतों को मारने वाला दीर्घायू वाला होगा।
शुक्र-
1. यदि चतुर्थ भाव में हो तो बृहस्पति का उपाय करें।
मंगल-
1. षष्ठ भाव में हो तो शनि का उपाय करें छोटी कन्याओं को 6 बादाम 6 दिन तक लगातार दे, मंगल बद का उपाय करें।
2. बंदरों को गुड़ और चना खिलावें।
3. कुंडली में मंगल वद हो तो उस उपाय अवश्य करें।
बुध-
1. यदि बुध दशम भाव में शनि का उपाय करें।
2. बुध दादश भाव में हो तो केतु का उपाय करें।
3. यदि नवम भाव में सूर्य+मंगल के युति हो और तृतीय भाव में बुध हो न बुध बोलेगा न औरों को बोलने देगा लसूडे का गिटक का हाल होगा मंदे अर्थ में दोनों ग्रहों को सुला देगा और स्वयं भी सोया हुआ होगा। चमगादड़ के महमान जहां हम लटके है, तुम भी लटको।
शनि-
1. यदि तृतीय भाव में शनि हो तो केतु का उपाय करें यानि काले कुत्ते की सेवा करें
2. षष्ठ भाव में तो राहु का उपाय इच्छाधारी सांप मददगार होगा।
3. नवम भाग में शनि का उपाय करे बृहस्पति का उपाय त्यागी गुरु की तरह मदद कर देगा।
राहु-केतु-
1. राहु लग्न में राशि फल का होगा और सूर्य का उपाय करें।
2. केतु चतुर्थ भाव में राशि फल का होता है, बृहस्पति का उपाय करने से शुभ देगा।
3. केतु दशम भाव में हो तो मंगल का उपाय करे यानि उस समय मंगल जिस भाव में होगा उस भाव का उपाय करें।
4. यदि केंद्रीय भाव 1-4-7-10 भाव में राहु-केतु हो तो जो ग्रह उच्च का होता है उसे उपाय करें जैसे राहु सप्तम भाव में हो तो शनि का उपाय करें क्योंकि सप्तम भाव में शनि उच्च का होता है और इसी प्रकार राहु लग्न में हो तो सूर्य का उपाय करें।
5. वर्ष फल में जो ग्रह लग्न में आता है सब से पहले शुभ या अशुभ प्रभा प्रकट करेगा जन्म कुन्डली में जिस भाव में बैठा हो इस के बाद अपने शत्रु ग्रहों पर चाहे उस की युति शत्रु ग्रह के साथ क्यों न हो इस के बाद मित्र ग्रहों और अन्य में अपने बराबर के ग्रहों पर।
6. यदि किसी भाव में दो से अधिक ग्रह स्थित हो तो लग्न में आया हुआ ग्रह अपने शत्रुओं से शत्रुता पूर्ण और मित्र से मित्रता पूर्ण व्यवहार करेगा।
7. जन्मकुंडली के द्वितीय भाव के ग्रह सदा शुभ फल देंगे, जब अष्टम भाव खाली हो तो यह बुढ़ापे में उत्तम फल देते हैं।
8. वर्ष फल में एकादश भाव का ग्रह लग्न में आये तो उत्तम फल देता है। अपने समयाविधि के अनुसार सूर्य 22 शनि 36 वर्ष के बाद निष्फल हो जाते हैं। विशेष कर जब जन्म कुंडली में सोये हुए हो इसलिए उन्हें अपनी समयाविधि से पहले जगा लेना चाहिए।
9. मन्दे भाव (अशुभ भाव) में स्थित ग्रह अपने भाव से संबंधित चीजों का हाल मन्दा नहीं करेगा बल्कि व चीजें मददगार होगी। जैसे सूर्य षष्ठ भाव में जो केतु का पक्का भाव है राजदरबार संबंधी कार्य बेटे जैसे शुक्र नवम या लग्न में आने पर सफेद गाय खरीदी जाये या 25 वर्ष विवाह किया जाए तो शुक्र का अशुभ फल होगा क्योंकि लग्न और नवम शुक्र के शत्रु ग्रह के हैं।
10. प्रत्येक वह ग्रह जो अपने पक्के भाव या निश्चित राशि में स्थित हो तो अपने पक्के भाव से संबंधित वस्तुओं पर शुभ प्रभाव डालेगा। जैसे सूर्य पंचम भाव में हो तो संतान और राजकीय कार्यों का उत्तम फल होगा।
11. यदि कोई उच्च ग्रह शत्रु ग्रह से नष्ट हो चुका हो तो शुभ प्रभाव के बजाए बुरा प्रभाव भी नहीं देगा।
12. प्रत्येक ग्रह अपनी उच्च राशि भाव में शुभ फल देता है।
13. तब कोई किसी ऐसे भाव में स्थित हो जहां पर वह उच्च का फल देने वाला हो तो वह उच्च ग्रह अपने साथ बैठे हुए शत्रु ग्रह या किसी दूसरे भाव में बैठे हुए शत्रु ग्रह पर अपनी दृष्टि दारा उच्च ग्रह अपना होगा। यानि उच्च के ग्रह अपना प्रभाव भेज सके तो उसका बुरा प्रभाव कभी नहीं होगा। यानि उच्च के ग्रह अपना शुभ फल देंगे और शत्रु ग्रह के साथ होने पर अपना नेक स्वभाव नहीं छोड़ेंगे।
14. जैसे बृहस्पति चतुर्थ भाव में और उस के शत्रु ग्रह शुक्र-बुध दशम भाव में हो तथा सूर्य लग्न में और शुक्र पापी ग्रह सप्तम भाव में हो तो औरत स्वास्थ्य खराब यानि टीवी आदि रोग हो तकता है, अब सात वाला सूर्य अन्य ग्रहों पर विचार करें।
15. चंद्र द्वितीय भाव में और उसके शत्रु ग्रह बुध-शुक्र पापी ग्रह राहु, केतु और शनि षष्ठ एवं दादश भाव में शुक्र द्वादश भाव में और उसके शत्रु ग्रह सूर्य, चंद्र, राहु द्वितीय भाव में.
16. मंगल लग्न में और उसके शत्रु ग्रह बुध, केतु द्वितीय भाव में।
17. बुध षष्ठ भाव में और उस के शत्रु ग्रह चंद्र हो द्वादश भाव में।
18. शनि सप्तम भाव में और उसके शत्रुग्रह चंद्र-सूर्य-मंगल हो लग्न में राहु तृतीय एवं षष्ठ भाव में और उसके शत्रु ग्रह शुक्र-सूर्य-मंगल द्वादश भाव में। केतु नवम एवं द्वादश भाव में और उसके शत्रु ग्रह चंद्र-मंगल द्वितीय भाव।

सुंदर मकान सभी का सपना होता है।

जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।
साथ ही मंगल की स्थिति का सुदड़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्यन्न पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेश, नवमेश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।
1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से)-
निष्पत्ति- लग्नेश चतुर्थ स्थान में हो चतुर्थेश लग्न में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग में जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।
2. उत्तम ग्रह योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1,4,7,9,10) में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।
3. अकस्मात घर प्राप्ति योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।
4. एक से अधिक मकानों का योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों में (1,4,7,10) हो। चतुर्थ भावके स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।
वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से)-
निष्पत्ति- नवमेश, दूसरे भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग में जन्में जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष में होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।
6. बड़े बंगले का योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव में यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
7. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति योग-
निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेश लग्न में हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।
परिणाम- ऐसा चातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेश केंद्र में हो तो ये योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को बिना प्रयत्न को घर मिल जाता है।
9. ग्रहनाश योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।
10. उत्तम कोठी योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश और दशमेश एक साथ केंद्र त्रिकोण में हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।
परिणाम- कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है। 

Thursday, August 1, 2013

इन्सान की तीस गलतियां:

इन्सान की तीस गलतियां:
1. इस ख्याल में रहना कि जवानी और तन्दुरुस्ती हमेशा रहेगी।
2. खुद को दूसरों से बेहतर समझना।
3. अपनी अक्ल को सबसे बढ़कर.समझना।
4. दुश्मन को कमजोर समझना।
5. बीमारी को मामुली समझकर शुरु में इलाज न करना।
6. अपनी राय को मानना और दूसरों के मशवरें को ठुकरा देना।
7. किसी के बारे में मालुम होना फिर भी उसकी चापलुसी में बार-बार
आ जाना।
8. बेकारी में आवारा घुमना और रोज़गार की तलाश न करना।
9. अपना राज़ किसी दूसरे को बता कर उससे छुपाए रखने की ताकीद
करना।
10. आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
11. लोगों की तक़लिफों में शरीक न होना, और उनसे मदद
की उम्मीद रखना।
12. एक दो मुलाक़ात में किसी के बारे में अच्छी राय कायम करना।
13. माँ-बाप की खिदमत न करना और अपनी औलाद से खिदमत
की उम्मीद रखना।
14. किसी काम को ये सोचकर अधुरा.छोड़ना कि फिर किसी दिन
पुरा कर लिया जाएगा।
15. दुसरों के साथ बुरा करना और उनसे अच्छे की उम्मीद रखना।
16. आवारा लोगों के साथ उठना बैठना।
17. कोई अच्छी राय दे तो उस पर ध्यान न देना।
18. खुद हराम व हलाल का ख्याल न करना और दूसरों को भी इस
राह पर लगाना।
19. झूठी कसम खाकर, झूठ बोलकर, धोखा देकर अपना माल बेचना,
या व्यापार करना।
20. इल्म, दीन या दीनदारी को इज्जतन समझना।
21. मुसिबतों में बेसब्र बन कर चीख़ पुकार करना।
22. फकीरों, और गरीबों को अपने घर से धक्का दे कर भगा देना।
23. ज़रुरत से ज्यादा बातचीत करना।
24. पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार नहीं रखना।
25. बादशाहों और अमीरों की दोस्ती पर यकीन रखना।
26. बिना वज़ह किसी के घरेलू मामले में.दखल देना।
27. बगैर सोचे समझे बात करना।
28. तीन दिन से ज्यादा किसी का.मेहमान बनना।
29. अपने घर का भेद दूसरों पर ज़ाहिर करना।
30. हर एक के सामने अपना दुख दर्द सुनाते रहना।