Thursday, May 30, 2013

New schedule announced for EWS quota admissions in Pune

The state education department has come out with a new schedule for the implementation of Right to Education Act in Pune. The decision was taken during a series of meetings held last week between education department officials and principals of schools in Pune and Pimpri-Chinchwad.
"Schools have been asked to receive applications till June 5. The applications will be scrutinised till June 10 and the results will be declared on June 11. The schools have been directed to inform the parents of the selected children by sending them SMSes. The schools will also write to parents of students not selected as to why they were denied admission," said Suman Shinde, Deputy Director of Education, Pune Division.
"If the number of applications received is more than the seats in a school, lottery system will be adopted to select candidates. This will be done in presence of an education officer from the area," added Shinde.
ZP education officer (primary) D Kurhade said the meetings were held at Pimpri-Chinchwad, Pune city, Pune rural and cantonment area from May 21 to May 24.
"The principals were asked to ensure the reserved 25 per cent seats for EWS students are filled before the start of the academic session. Schools have also been directed to publicise 25 per cent reservation policy in their respective areas so that more and more students can benefit from it," added Kurhade.
Shinde said even if the schools do not manage to fill the reserved seats, they will not be allowed to fill these seats with general category students.
"This has been done to ensure transparency in the procedure. The schools will not block the reserved seats and will try to admit EWS students," added Shinde.

Plea says poor students not given books, HC notice to govt

The Delhi High Court on Wednesday issued notices to the Delhi government, DDA and Land and Development Office to reply to a PIL demanding proper implementation of the provisions of the Right to Education Act to provide free books and uniforms to the children from economically weaker sections (EWS) in private unaided schools.
"Unaided private schools are not providing free books, uniform and other study material, which are entitlement of each and every student admitted in a school under provisions of Sections 3(2) and 12(1)(c) of Right of Children to Free and Compulsory Education Act," the plea filed by NGO Justice For All said.
The petition said the government had failed to ensure the creation of a District Admission Monitoring Committee (DAMC) to facilitate the admission of EWS students in the private unaided schools under Clause 7 of the Delhi School Admission Order (EWS Order) of 2011.
The DAMCs were to be created in all 12 districts in Delhi.
Taking the example of Pitampura, the NGO alleged that in the absence of a DAMC, people who were facing difficulties in getting their child admitted to schools were approaching the NGO for help.
The bench of Chief Justice D Murugesan and Justice Jayant Nath issued notice to the Delhi government and Director of Education and asked them to file a reply by August 7.
The plea also informed the court that over 410 schools in the capital were running on the public land allotted to them at highly concessional rates in the term of grants under provisions of Delhi Development Act, 1957, Nazul Land Rules, 1981, and Master Plans of Delhi. The petitioner said such schools are under contractual obligation to provide freeship to the specified percentages of students.
The plea also states that the amount given as reimbursement by the government was not enough to meet the actual expenditure of books, uniforms, other study material and teaching aids.
"Student are facing a lot of financial difficulties to continue their education, which sometimes result in the drop out from the school," the plea said, asking the court to direct the government to issue proper guidelines for providing free books and uniforms.

Wednesday, May 22, 2013


II श्री श्रवण बाबा का जयकारा II
जब तक सूरज चाँद रहेगा।
श्रवण बाबा का नाम अमर रहेगा।
 
श्रवण कुमार का नाम इतिहास में मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए अमर रहेगा। ये कहानी उस समय की है जब महाराज दशरथ अयोध्या पर राज किया करते थे

बहुत समय पहले  त्रेतायुग में श्रवण कुमार नाम का एक बालक था। श्रवण के माता-पिता अंधे थे। श्रवण अपने माता-पिता को बहुत प्यार करता। उसकी माँ ने बहुत कष्ट उठाकर श्रवण को पाला था। जैसे-जैसे श्रवण बड़ा होता गया, अपने माता-पिता के कामों में अधिक से अधिक मदद करता।

सुबह उठकर श्रवण माता-पिता के लिए नदी से पानी भरकर लाता। जंगल से लकड़ियाँ लाता। चूल्हा जलाकर खाना बनाता। माँ उसे मना करतीं-

बेटा श्रवण, तू हमारे लिए इतनी मेहनत क्यों करता है? भोजन तो मैं बना सकती हूँ। इतना काम करके तू थक जाएगा।

नहीं माँ, तुम्हारे और पिता जी का काम करने में मुझे जरा भी थकान नहीं होती। मुझे आनंद मिलता है। तुम देख नहीं सकतीं। रोटी बनाते हुए, तुम्हारे हाथ जल जाएँगे।

हे भगवान! हमारे श्रवण जैसा बेटा हर माँ-बाप को मिले। उसे हमारा कितना खयाल है।माता-पिता श्रवण को आशीर्वाद देते थकते।

श्रवण के माता-पिता रोज भगवान की पूजा करते। श्रवण उनकी पूजा के लिए फूल लाता, बैठने के लिए आसन बिछाता। माता-पिता के साथ श्रवण भी पूजा करता।

मता-पिता की सेवा करता श्रवण बड़ा होता गया। घर के काम पूरे कर, श्रवण बाहर काम करने जाता। अब उसके माता-पिता को काम नहीं करना होता।

एक दिन श्रवण के माता-पिता ने कहा-

बेटा, तुमने हमारी सारी इच्छाएँ पूरी की हैं। अब एक इच्छा बाकी रह गई है।

कौन-सी इच्छा माँ? क्या चाहते हैं पिता जी? आप आज्ञा दीजिए। प्राण रहते आपकी इच्छा पूरी करूँगा।

हमारी उमर हो गई अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ. यात्रा पर जाना चाहते हैं बेटा। शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले।

श्रवण सोच में पड़ गया। उन दिनों आज की तरह बस या रेलगाड़ियाँ नहीं थी। वे लोग ज्यादा चल भी नहीं सकते थे। माता-पिता की इच्छा कैसे पूरी करूँ, यह बात सोचते-सोचते श्रवण को एक उपाय सूझ गया। श्रवण ने दो बड़ी-बड़ी टोकरियाँ लीं। उन्हें एक मजबूत लाठी के दोनों सिरों पर रस्सी से बाँधकर लटका दिया। इस तरह एक बड़ा काँवर बन गया। फिर उसने माता-पिता को गोद में उठाकर एक-एक टोकरी में बिठा दिया। लाठी कंधे पर टाँगकर श्रवण माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने चल पड़ा।

श्रवण एक-एक कर उन्हें कई तीर्थ स्थानों पर ले जाता है। वे लोग गया, काशी, प्रयाग सब जगह गए। माता-पिता देख नहीं सकते थे इसलिए श्रवण उन्हें तीर्थ के बारे में सारी बातें सुनाता। माता-पिता बहुत प्रसन्न थे। एक दिन माँ ने कहा-”बेटा श्रवण, हम अंधों के लिए तुम आँखें बन गए हो। तुम्हारे मुंह से तीर्थ के बारे में सुनकर हमें लगता है, हमने अपनी आँखों से भगवान को देख लिया है।

हाँ बेटा, तुम्हारे जैसा बेटा पाकर, हमारा जीवन धन्य हुआ। हमारा बोझ उठाते तुम थक जाते हो, पर कभी उफ़ नहीं करते।पिता ने भी श्रवण को आशीर्वाद दिया।

ऐसा कहें पिता जी, माता-पिता बच्चों पर कभी बोझ नहीं होते। यह तो मेरा कर्तव्य है। आप मेरी चिंता करें।

एक दोपहर श्रवण और उसके माता-पिता अयोध्या के पास एक जंगल में विश्राम कर रहे थे। माँ को प्यास लगी। उन्होंने श्रवण से कहा-

बेटा, क्या यहाँ आसपास पानी मिलेगा? धूप के कारण प्यास लग रही है।

हाँ, माँ। पास ही नदी बह रही है। मैं जल लेकर आता हूँ।

श्रवण कमंडल लेकर पानी लाने चला गया।

अयोध्या के राजा दशरथ को शिकार खेलने का शौक था। वे भी जंगल में शिकार खेलने आए हुए थे। श्रवण ने जल भरने के लिए कमंडल को पानी में डुबोया। बर्तन मे पानी भरने की अवाज़ सुनकर राजा दशरथ को लगा कोई जानवर पानी पानी पीने आया है। राजा दशरथ आवाज सुनकर, अचूक निशाना लगा सकते थे। आवाज के आधार पर उन्होंने तीर मारा। तीर सीधा श्रवण के सीने में जा लगा। श्रवण के मुंह सेआहनिकल गई।

राजा जब शिकार को लेने पहुंचे तो उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। अनजाने में उनसे इतना बड़ा अपराध हो गया। उन्होंने श्रवण से क्षमा माँगी।

मुझे क्षमा करना एभाई अनजाने में अपराध कर बैठा। बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?“

राजन्, जंगल में मेरे माता-पिता प्यासे बैठे हैं। आप जल ले जाकर उनकी प्यास बुझा दीजिए। मेरे विषय में उन्हें कुछ बताइएगा। यही मेरी विनती है।इतना कहते-कहते श्रवण ने प्राण त्याग दिए।

दुखी हृदय से राजा दशरथ, जल लेकर श्रवण के माता-पिता के पास पहुंचे। श्रवण के माता-पिता अपने पुत्र के पैरों की आहट अच्छी तरह पहचानते थे। राजा के पैरों की आहट सुन वे चैंक गए।

कौन है? हमारा बेटा श्रवण कहाँ है?“

बिना उत्तर दिए राजा ने जल से भरा कमंडल आगे कर, उन्हें पानी पिलाना चाहा, पर श्रवण की माँ चीख पड़ी-
तुम बोलते क्यों नहीं, बताओ हमारा बेटा कहाँ है?“

माँ, अनजाने में मेरा चलाया बाण श्रवण के सीने में लग गया। उसने मुझे आपको पानी पिलाने भेजा है। मुझे क्षमा कर दीजिए।राजा का गला भर आया।

हाँ श्रवण, हाय मेरा बेटामाँ चीत्कार कर उठी। बेटे का नाम रो-रोकर लेते हुए, दोनों ने प्राण त्याग दिए। पानी को उन्होंने हाथ भी नहीं लगाया। प्यासे ही उन्होंने इस संसार से विदा ले ली।

सचमुच श्रवण कुमार की माता-पिता के प्रति भक्ति अनुपम थी। जो पुत्र माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करते हैं, उन्हें श्रवण कुमार कहकर पुकारा जाता है। सच है, माता-पिता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।

कहा जाता है कि राजा दशरथ ने बूढ़े माँ-बाप से उनके बेटे को छीना था। इसीलिए राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग सहना पड़ा रामचंद्र जी चौदह साल के लिए वनवास को गए। राजा दशरथ यह वियोग नहीं सह पाए। इसीलिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।